पूर्व- राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने चाहा होता तो पुलवामा कांड का मुद्दा बहुत बड़ा हो सकता था। वह सरकार को हिला सकता था। क्योंकि समाज के अपेक्षाकृत समझदार और शिक्षित लोगों के मन में पुलवामा कांड को लेकर उस समय भी संदेह और सवाल उठे थे। लेकिन सत्यपाल मलिक ने तब राजनीति में ‘बड़ा नायक’ और बदलाव का प्रेरक बनकर उभरने का ऐतिहासिक अवसर गंवा दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने उस मुद्दे पर उनको चुप रहने को कहा और वह चुप रह गये!
कश्मीर के राज्यपाल के रूप में उन्होंने एक और बड़ा राजनीतिक और संवैधानिक गड़बड़झाला किया। नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस ने जब साझा सरकार की पहल की तो मलिक साहब ने तीनों दलों की पहल को दरकिनार कर दिया। दलील दी कि उनके राजभवन की फैक्स मशीन खराब थी, जिसकी वजह से विपक्ष के इन दलों की पहल या प्रस्ताव की बात उन तक नहीं पहुंची। और इस तरह उन्होंने सूबे की विधानसभा भंग कर भाजपा की भरपूर मदद की। इसके बाद ही केंद्र ने कश्मीर को लेकर 370 के खास प्रावधान के खात्मे जैसे बड़े फैसले किये।
पुलवामा कांड के बाद जब महामहिम मलिक केंद्र के सत्ताधारी दल या सत्ता-प्रतिष्ठान के एक ताकतवर हिस्से की ‘राष्ट्र विरोधी साजिश’ को समझ या भांप चुके थे तो वह लगातार उस प्रतिष्ठान के संचालकों का सहयोग क्यों करते रहे? इस सवाल या मुद्दे पर मलिक ने कभी सुसंगत स्पष्टीकरण नहीं दिया।
अभी भी राष्ट्र और भाजपा की राजनीति खतरे में है,सत्यपाल मलिक 2024 चुनावों के पूर्व दस्तावेजों सहित पुलवामा काण्ड का खुलासा कर सकते हैं,शायद वे सही समय के इंतजार में हों या किसी बड़ी सौदेबाजी के जो अब नामुमकिन लगती है,भाजपा सरकार के असंवैधानिक कार्यों के सम्बन्ध में कई मामले है जो सत्यता के करीब हैं लेकिन उनकी सही जांच न होने से सच्चाई सामने नहीं आ रही है,भविष्य में ये मामले भाजपा दल के लिए परेशानी खड़ी करेंगे यदि भाजपा की पुनः सरकार बन जाती है तो मामले दबे रहेंगे लेकिन यदि सरकार बदली तो भाजपा की भीषण बदहाली से इंकार नहीं किया जा सकता है,कर्नाटक चुनाव परिणाम प्रदेश ही नहीं देश की राजनीति को नयी दिशा प्रदान करेंगे यह तय है।