हरियाली तीज प्रकृति से एकाकार होने का पर्व है। आखिर यह पर्व सिर्फ स्त्रियां ही क्यों मनाती हैं ? जवाब है कि मेल मिलाप का गुण सिर्फ स्त्री के ही पास है।
वही प्रकृति की तरह बन सकती है। पुरुष तो अपने अहं में ही उलझा रहता है। स्त्रियां ही तीज का सार समझती हैं। हरियाली तीज ऋतु के चरम उभार का पर्व है। सावन में जब प्रकृति श्रृंगार कर चुकी होती है तो तो मानवी सृष्टि का मन मयूर भी नाच उठता है।
इस दिन स्त्रियां भी प्रकृति के साथ एकाकार होती हुई हरे वस्त्र और हरी चूड़ियां पहनती हैं। वे लोकगीत गाती हुई झूला झूलती हैं। विवाहित स्त्रियां चंद्रमा की पूजा करती हैं। राजस्थान के कुछ भागों में इसे हरतालिका नाम से जाना जाता है। हरतालिका पर्व शिव तथा पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है।
तीज पर महिलाएं क्यों लगाती हैं मेंहदी
सुसज्जित हाथी तथा ऊंट इसका मुख्य आकर्षण होते हैं। विवाहित स्त्रियां इस पर्व को मनाने के लिए अपने मायके आती हैं। हाथ और पैरों में मेहंदी लगाती है। इसके दूसरे दिन विवाहित स्त्रियां अपने पतियों की दीर्घायु की कामना करती हुई निर्जल व्रत रखती हैं। और वट वृक्ष की पूजा की जाती है।
पर्व का उल्लास मनाने में पक्षी भी पीछे नहीं रहते। आम की डाली पर पंचम स्वर में गाती हुई कोयल लोकनृत्य व लोकगीतों में प्राण डाल देती हैं। मानो वे भी मल्हार राग में गा रही हों। पिउ-पिउ करता हुआ पपीहा उन नवयुवतियों के हृदय में हूक उत्पन्न करता है जिनके पति धनोपार्जन के लिए परदेस गए हों।
नाचते हुए मोरों का दृश्य बरबस यात्रियों को पास बुलाने के लिए लुभा लेता है। उधर सरोवर में कल्लोल करते हुए हंस प्रकृति के सौन्दर्य को दोगुना कर देते हैं। प्रकृति के आह्लाद से भरा यह उत्सव जन मानस में भी प्रसन्नता की हिलोरें उत्पन्न करता है।