आज से हजारों साल पहले हरियाणा के कुरूक्षेत्र में कौरवों और पाण्डवों के बीच महाभारत का महायुद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध में प्राचीन भारत के लगभग सभी राजे-महाराजे और योद्धाओं ने भाग लिया। लाखों लोगों ने इस महायुद्ध अपने प्राण गंवाएं। उन दिनों युद्ध के लिए स्थान निर्धारित किया जाता ताकि आम जनता को युद्ध से हानि नहीं हो।
जब तय हो गया कि कौरव और पाण्डवों के बीच महायुद्ध होगा तब युद्धक्षेत्र की तलाश शुरू हुई। भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि इस युद्ध में लाखों लोग वीरगति को प्राप्त होंगे। इसलिए ऎसे स्थान की तलाश में थे जहां मरने से आत्मा को मुक्ति मिल जाए।
इसी तलाश के क्रम में वह कुरूक्षेत्र पहुंचे। यहां कृष्ण ने अद्भुत दृश्य देखा। एक किसान हल जोत रहा था तभी एक विषैले सांप ने किसान के पुत्र का डस लिया। किसान ने वहीं पुत्र का अंतिम संस्कार कर दिया और खेत जोतने लगा। किसान पुत्र मोह में पड़कर कर्म से नहीं हटा।
कृष्ण ने उसी समय तय किया कि यही वह स्थान है जहां धर्म युद्ध हो सकता है। यहां युद्ध होने पर योद्धा कर्म से हटेंगे नहीं और धर्म की जीत होगी। कुरूक्षेत्र के विषय में शिव पुराण में भी बताया गया है कि यह धर्मक्षेत्र है जहां दान, तप करने से कई गुणा पुण्य प्राप्त होता है। इस धर्मक्षेत्र में प्राण त्याग करने से आत्मा को सद्गति प्राप्त होती है।
भगवान विष्णु ने एक बार कौरव और पाण्डवों के पूर्वज महाराज कुरू को कुरूक्षेत्र में दर्शन देकर कहा था कि आपके पुण्य कर्मों से इस क्षेत्र का नाम कुरूक्षेत्र होगा। जिस व्यक्ति की यहां मृत्यु होगी वह सीधा स्वर्ग जाएगा। इन्हीं कारणों से महाभारत का महायुद्ध कुरूक्षेत्र में लड़ गया था।