उगते हुए सूर्य को जल देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। बहुत से लोग आज भी इसका पालन करते हैं इसके पीछे धार्मिक मान्यता हीं नहीं बल्कि वैज्ञानिक आधार भी है। धार्मिक दृष्टि से बात करें तो बिना सूर्य को जल अर्पित किये भोजन करना महापाप है। इस बात का उल्लेख ‘स्कंद पुराण’ में मिलता है।
स्कंद पुराण में इस बात का उल्लेख संभवतः इसलिए किया गया है क्योंकि सूर्य और चन्द्र प्रत्यक्ष देवता हैं। इनकी किरणों से प्रकृति में संतुलन बना रहता है। इन्हीं के कारण अनाज और फल-फूल उत्पन्न होते हैं। इसलिए इनका आभार व्यक्त करने के लिए प्रातः काल जल अर्पित करने की बात कही गयी है।
धार्मिक कारण की अपेक्षा उगते सूर्य को जल देने के पीछे वैज्ञानिक कारण अधिक प्रभावी है। जल चिकित्सा और आयुर्वेद के अनुसार प्रातःकालीन सूर्य को सिर के ऊपर पानी का बर्तन ले जाकर जल अर्पित करना चाहिए। जल अर्पित करते समय अपनी दृष्टि जलधार के बीच में रखें ताकि जल से छनकर सूर्य की किरणें दोनों आंखों के मध्य में आज्ञाचक्र पर पड़े। इससे आंखों की रोशनी और बौद्घिक क्षमता बढ़ती है।
जल से छनकर सूर्य की किरणें जब शरीर पर पड़ती हैं तो शरीर में उर्जा का संचार होता है। शरीर में रोग से लड़ने की शक्ति बढ़ती है साथ ही आस-पास सकारात्मक उर्जा का संचार होता है जो जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
ज्योतिषशास्त्र में कहा जाता है कि कुण्डली में सूर्य कमज़ोर स्थिति में होने पर उगते सूर्य को जल देना चाहिए। सूर्य के मजबूत होने से शरीर स्वस्थ और उर्जावान रहता है। इससे कामयाबी के रास्ते में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।