रांची – झारखंड में भाजपा में पुनर्वापसी के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी में पुन: हिंदुत्व का प्रेत समा गया है। पिछली पांच अगस्त को अयोध्या में प्रधानमंत्री द्वारा भूमि पूजन किए जाने को लेकर उत्साहित बाबूलाल मरांडी और रांची की मेयर आशा लकड़ा ने आदिवासियों के पूजा स्थल ‘सरना स्थल’ से मिट्टी लेकर 20 पाहनों (पुजारियों) को अयोध्या भेजा। इसे लेकर राज्य के आदिवासी समाज में आक्रोश है।
गुमला जिला आदिवासी छात्रसंघ के संयोजक अनुप टोप्पो ने बाबूलाल मरांडी के बयान ‘रग-रग में हैं राम’ पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है, ”यह कोई आस्था नहीं है, बल्कि यह उनका राजनीतिक प्रपंच है।” टोप्पो कहते हैं, ”कितनी अजीब बात है कि बाबूलाल मरांडी का वास्ता राम से तो है, मगर आदिवासियों से नहीं।”
रांची के पिठोरिया में केंद्रीय सरना समिति की एक बैठक में समिति के अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने कहा, ”आरएसएस और भाजपा से जुड़े आदिवासी नेताओं द्वारा सरना स्थल की मिट्टी ले जाना आदिवासी समाज के साथ विश्वासघात है। दरअसल कारपोरेट पोषित भाजपा का नेतृत्व नहीं चाहता कि आदिवासियों का अलग धर्म कोड बने। ‘सरना स्थल’ से मिट्टी लेकर पाहनों द्वारा अयोध्या भेजा जाना आदिवासी समाज को हिन्दू धर्म में विलय का षड़यंत्र है।”
आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेम शाही मुंडा कहते हैं, ”विहिप हो, आरएसएस या भाजपा, वे पहले आदिवासियों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के लिए अलग धर्म कोड लागू कराएं, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि उनका असली मकसद है आदिवासियों को हिंदू धर्म में विलय करना, जिससे उन्हें झारखंड को लूटने की छूट मिल जाए।”
आदिवासी समन्वय समिति के अरविंद उरांव कहते हैं, ”आदिवासी समाज को बांटने के लिए कभी ‘सरना-सनातन एक है’ तो कभी ‘सरना-ईसाई भाई-भाई’ का नारा देकर आदिवासियों की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान को समूल नष्ट करने की नापाक कोशिश की जा रही है, ताकि उनको आदिवासियत परंपरा से बेदखल किया जा सके। इसका मकसद उनके जल, जंगल, जमीन पर कब्जा करने का रास्ता आसान करना है।”
बता दें कि आदिवासी छात्रसंघ ने राज्य के कई भागों में उन आदिवासी नेताओं का पुतला दहन किया है जो आरएसएस या भाजपा से जुड़े हैं।
इस विरोध के बीच बंधन तिग्गा ने बयान दिया है कि रांची की मेयर आशा लकड़ा या पूर्व विधायक गंगोत्री कुजूर खुद को वानर या शूद्र कह सकती हैं, आदिवासी समाज को नहीं। वे लोग आरएसएस और विहिप के मानसिक गुलाम हैं, जो भाजपा की दलाली कर रहे हैं। गंगोत्री कुजूर द्वारा चान्हों के सरना स्थल से जो स्वयं में पवित्र है, वहां ब्राह्मण से शूद्ध करा कर मिट्टी लेना अपत्तिजनक है। यह पाहनों के साथ ही पूरे आदिवासी समाज का भी अपमान है।”