मप्र की राजधानी भोपाल में 4 दिवसीय विधानसभा सत्र आहूत किया गया,9 अगस्त से 12 अगस्त तक चलने वाले इस सत्र का हंगामेदार होना तय था और यह भी खुसुर-फुसुर थी की पूर्व के वर्षों की तरह शासकीय कार्यों को निबटा शिवराज सरकार इस सत्र का पहले ही समापन कर देगी लेकिन इतनी जल्दी यह भान किसी को नहीं था.लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकार अपनी अक्षमताओं से इतनी घबराई हुई है कि वह चार दिन विपक्ष की उन आवाजों को सुन नहीं पायी जिसमें उसका विरोध सामने आता.नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ की सदन में जिन विषयों पर चर्चा की मांग थी वे निम्न थे – आदिवासियों पर चर्चा
– बेरोज़गारी पर चर्चा
– महंगाई पर चर्चा
– ओबीसी आरक्षण पर चर्चा
– कोरोना पर चर्चा
– पेट्रोल-डीज़ल व गैस के दाम पर चर्चा
– बाढ़ पर चर्चा
– किसान पर चर्चा
– महिला सुरक्षा पर चर्चा
आदिवासियों के मुद्दे पर कांग्रेस ने पहले दिन ही हंगामा शुरू कर दिया जब की परंपरा रही है मृत सदस्यों को श्रद्धांजलि के बाद या तो सदन अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दिया जाता है या उसके बाद कोई कार्यवाही होती है लेकिन कांग्रेस दल के सदस्यों ने निधन के उल्लेख के पूर्व ही नारेबाजी शुरू कर दी और भाजपा ने इसे भावनात्मक मुद्दा बना आदिवासियों के मुद्दे का कमजोर करने की चाल चली। सदन अगले दिन शुरू होते ही कांग्रेस के द्वारा नारेबाजी शुरू हुयी ,सदन में हंगामा हुआ उसी दौरान सभी शासकीय कार्य सत्तापक्ष द्वारा पूरे कर सदन अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गयी.
सदन आहूत करने की दिनाँक के कुछ पहले चम्बल क्षेत्र में बाढ़ का प्रकोप सामने आया और हुयी अव्यवस्था के कारण विपक्ष को सरकार को घेरने का मौक़ा मिल गया,कांग्रेस विधायक बाबू जंडेल ने क्षेत्र के निवासियों को मदद न मिलने के आक्रोश में विधानसभा परिसर में ही अपने कपडे फाड़ दिए और कहा जब मेरे क्षेत्र के लोगों को कपडे नहीं मिल पा रहे तो मैं क्यों पहनूँ ?
सत्ता-पक्ष को अंदेशा था की विपक्ष की जोरदार विरोध प्रदर्शनों की तैयारी है और इन चार दिनों में सदन के अंदर और बाहर सरकार की सदन के अंदर और बाहर बहुत बदनामी होने वाली है वहीँ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के ऊपर पद से हटने की तलवार लटक रही है और यह ही वो समय है जब उन्हें हटाया जा सकता है वरना आगे के समय में उन्हें हटाना मुश्किल है और भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है शिवराज के चेहरे के साथ आगामी चुनाव में उतरना नुकसानदायक रहेगा।
शिवराज सिंह चतुर राजनीतिज्ञ हैं इसका उदाहरण विधानसभा में उनके आक्रामक तेवरों वाला भाषण और सिर्फ उस भाषण की क्लिप विधानसभा से सोशल मीडिया में बाहर आना शिवराज सिंह की राजनैतिक चतुराई प्रदर्शित करता है आज के दिनों में संघ के दत्तात्रेय होसबोले भी भोपाल आये हुए हैं उनके सामने कांग्रेस का प्रदर्शन शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए घातक सिद्ध होता यह भी एक कारण रहा की विधानसभा 4 घंटे में अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गयी.शिवराज सिंह के पूर्व कार्यकाल में ऐसा करना एक परम्परा बन चुका है ,विधानसभा कार्यसमय हम निश्चित समय से पहले ख़त्म करके ,विपक्ष की अनसुनी कर आखिर हम किस ओर जा रहे हैं ? लोकतंत्र की व्यवस्था जनहित के लिए है लेकिन लोकतांत्रिक राजनैतिक दल उसे ख़त्म करने पर उतारू हैं ,कहीं एक दिन ऐसा न हो की लोकतंत्र के मंदिर ये सदन इतिहास बनकर रह जाएँ।
वहीँ लोकसभा का सत्र भी अपने तय समय से दो दिन पूर्व ख़त्म कर दिया गया ये संकेत इंगित करते है कि सत्ता-पक्ष अपनी कमियों के मुद्दों के लिए विपक्ष के विरोध के स्वर सुनने के मूड में नहीं है और न ही उसकी इच्छा है.
मप्र में समय के पूर्व सत्र का समापन होना अखबारों और मीडिया संस्थानों में भी गंभीरता से नहीं लिया गया ,न तो यह पहले पन्ने की हेडलाइन बना और न ही सम्पादकीय में दृष्टिगोचर हुआ.
यदि इसी तरह चलता रहा हो भारत में भी तानाशाही शासन स्थापित हो जाएगा और लोकतांत्रिक व्यवस्था का खात्मा।
अनिल कुमार सिंह