नई दिल्ली: ‘एनटीपीसी वापस जाओ’ के पोस्टर के बीच जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति (जेबीएसएस) ने रविवार को घोषणा की कि वह 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर पूरे शहर में विरोध प्रदर्शन करेगी.
समिति के अनुसार, सरकार से जोशीमठ के पुनर्वास के लिए नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीसीपी) से मुआवजा लेने की मांग को लेकर ग्रामीण सड़कों और हाईवे को जाम करने के साथ ही तहसील कार्यालय पर धरना देंगे.
राज्य सरकार द्वारा पहले ही राहत पैकेज की घोषणा करने और विस्थापितों एवं प्रभावित परिवारों की मदद किए जाने के बावजूद भी विरोध प्रदर्शन करने का कारण समझाते हुए समिति के संयोजक अतुल सती ने द हिंदू को बताया कि सरकार एनटीपीसी को क्लीनचिट दे रही है और इससे निवासियों में गुस्सा है.
सती ने कहा, ‘उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वर्तमान स्थिति को प्राकृतिक आपदा करार दिया है. यह प्राकृतिक आपदा नहीं है.’
उन्होंने आगे कहा कि लड़ाई अब जोशीमठ के लोगों और एनटीपीसी के बीच है, जिसकी 500 मेगावाट तपोवन- विष्णुगढ़ परियोजना ने शहर को नुकसान पहुंचाया है.
उन्होंने आगे कहा, ‘जब एनटीपीसी ने हमारे कस्बे और घरों को नुकसान पहुंचाया है, तो सरकार इसे जवाबदेह क्यों नहीं ठहरा रही है और पुनर्वास के लिए मुआवजा क्यों नहीं मांग रही है. हम तब तक लड़ाई जारी रखेंगे जब तक सरकार एनटीपीसी से जोशीमठ को हुए नुकसान की भरपाई नहीं कर लेती और बिजली परियोजना पर रोक नहीं लगाती.’
यह समझाते हुए कि कैसे एनटीपीसी अकेला नहीं है और बिजली परियोजनाओं ने हिमालयी शहरों में कहर बरपाया है, सती ने कहा कि जोशीमठ से करीब 15 किलोमीटर दूर चाईं गांव में, 2007 में जयप्रकाश पावर वेंचर्स लिमिटेड (जेपीवीएल) की 400 मेगावाट की विष्णुप्रयाग बांध की सुरंग की लीक होने के बाद जमीन धंसने का अनुभव किया गया था.
उन्होंने कहा, ‘लंबागर, रेणी वो अन्य गांव हैं, जहां आप आसानी से बिजली परियोजनाओं और बांधों द्वारा किए गए नुकसान के निशान पा सकते हैं. यह कोई नई बात नहीं है.’
साथ ही उन्होंने कहा कि आसपास के 50 गावों के लोगों के 26 जनवरी के प्रदर्शन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाएगा.
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति की लाउडस्पीकर लगी एक वैन शहर और आसपास के इलाकों में चक्कर लगाती रहती है, ताकि लोगों को विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए बुलाया जा सके.
समिति की वैन से यह घोषणा की जाती है, ‘आप आइए और अपनी लड़ाई लड़िए.’
बता दें कि जोशीमठ में जमीन धंसने की समीक्षा करने के लिए बीते 10 जनवरी को केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने एनटीपीसी के अधिकारियों को तलब किया था, जो इस क्षेत्र में तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना का निर्माण कर रहे हैं.
भारत की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी ने एक दिन बाद मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा था कि इस क्षेत्र की जमीन धंसने में उसकी परियोजना की कोई भूमिका नहीं है.
इस बीच भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा जारी उपग्रह तस्वीरों से जोशीमठ में भूमि धंसने की चिंता बीते 13 जनवरी को और बढ़ गई, जिसमें दिखाया गया कि जोशीमठ 12 दिनों में 5.4 सेंटीमीटर तक धंस गया है.
इसके बाद राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) और उत्तराखंड सरकार ने अंतरिक्ष एजेंसी (इसरो) समेत कई सरकारी संस्थानों को निर्देश दिया है कि वे जोशीमठ की स्थिति पर मीडिया के साथ बातचीत न करें या सोशल मीडिया पर जानकारी साझा न करें.
तब इसरो ने जमीन धंसाव से संबंधित अपनी रिपोर्ट वापस ले ली थी.
यही नहीं, जोशीमठ में भूमि धंसने पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध बद्रीनाथ मंदिर के प्रमुख पुजारी ईश्वर प्रसाद नंबूदरी ने जोशीमठ में प्रकृति और लोगों को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजनाओं को रोकने का अधिकारियों से अनुरोध किया है.
उन्होंने कहा है, ‘न केवल एनटीपीसी परियोजना, बल्कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली सभी परियोजनाओं को रोका जाना चाहिए. हमें अपनी पवित्र भूमि को नष्ट नहीं करना चाहिए. हिमालय क्षेत्र एक संवेदनशील क्षेत्र है. इस पवित्र भूमि की रक्षा की जानी चाहिए.’
बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी ने किसी का नाम लिए बिना कहा कि परियोजना के काम अक्सर ‘अकेले मुनाफा कमाने के निहित स्वार्थ’ के साथ किए जाते हैं.
इसी महीने जोशीमठ से करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित सेलंग गांव के लोगों ने कहा था कि उनके गांव में भी जोशीमठ जैसी स्थिति उत्पन्न होने की आशंका मंडरा रही है, क्योंकि पिछले कुछ महीनों से खेतों और कई घरों में दरारें दिखाई दे रही हैं.
बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-58) पर स्थित सेलंग के निवासियों ने भी अपनी दुर्दशा के लिए एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को जिम्मेदार ठहराया है.
ग्रामीणों का कहना था कि गांव के नीचे एनटीपीसी की नौ सुरंगें बनी हैं, सुरंगों के निर्माण में बहुत सारे विस्फोटकों का इस्तेमाल किया गया था, जिससे गांव की नींव को नुकसान पहुंचा है.
मालूम हो कि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों और अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग गंतव्य औली का प्रवेश द्वार कहलाने वाला जोशीमठ शहर आपदा के कगार पर खड़ा है.
जोशीमठ को भूस्खलन और धंसाव क्षेत्र घोषित कर दिया गया है तथा दरकते शहर के क्षतिग्रस्त घरों में रह रहे परिवारों को अस्थायी राहत केंद्रों में पहुंचाया जा रहा है.
आदिगुरु शंकराचार्य की तपोभूमि के रूप में जाना जाने वाला जोशीमठ निर्माण गतिविधियों के कारण धीरे-धीरे दरक रहा है और इसके घरों, सड़कों तथा खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें आ रही हैं. तमाम घर धंस गए हैं.
नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीसीपी) की पनबिजली परियोजना समेत शहर में बड़े पैमाने पर चल रहीं निर्माण गतिविधियों के कारण इस शहर की इमारतों में दरारें पड़ने संबंधी चेतावनियों की अनदेखी करने को लेकर स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है.
स्थानीय लोग इमारतों की खतरनाक स्थिति के लिए मुख्यत: एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जैसी परियोजनाओं और अन्य बड़ी निर्माण गतिविधियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.