नई दिल्ली– प्रेस की दशा-दिशा पर नजर रखने वाली वैश्विक संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने बीते दिनों उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के लोनी इलाके में बुजुर्ग मुस्लिम पर हमले को लेकर किए गए ट्वीट के संबंध में द वायर, ट्विटर इंडिया और विभिन्न पत्रकारों पर उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा लगाए गए आपराधिक साजिश रचने के बेहूदा आरोपों को न्यायिक उत्पीड़न बताते हुए इन्हें तुरंत वापस लेने की मांग की.
आरएसएफ ने कहा कि यूपी पुलिस द्वारा जिन समाचार संगठनों और पत्रकारों को निशाना बनाया है, उन्होंने सिर्फ मुस्लिम शख्स पर हमले के वीडियो को ट्वीट किया था और यह वीडियो पहले ही सोशल मीडिया पर वायरल था और इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता.
बता दें कि 15 जून को द वायर ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि मुस्लिम बुजुर्ग पर पांच जून को गाजियाबाद जिले के लोनी में उस समय हमला किया गया था, जब वह मस्जिद में नमाज अदा करने के लिए जा रहे थे.
72 वर्षीयअब्दुल समद सैफी ने इस वायरल वीडियो में कहा था कि हमलावरों ने उन पर हमले के दौरान उनकी दाढ़ी भी काट दी थी और उनसे जबरन ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने को कहा था.
गाजियाबाद पुलिस ने दावा कि यह घटना इसलिए हुई क्योंकि आरोपी सैफी द्वारा बेचे गए एक ‘ताबीज’ से नाखुश थे और मामले में किसी भी सांप्रदायिक एंगल से इनकार किया है. दूसरी ओर पीड़ित सैफी के बड़े बेटे बब्बू ने द वायर को बताया कि उनके पिता हमलावरों में से किसी को नहीं जानते थे. उन्होंने कहा कि उनका पारिवारिक व्यवसाय बढ़ईगिरी का है और पुलिस का ताबीज का दावा गलत है.
आरएसएफ ने कहा कि एफआईआर में नामजद तीन पत्रकारों द्वारा इस घटना का वीडियो ट्वीट करने से पहले ही यह सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर वायरल हो चुका था.
इस मामले में 15 जून रात 11:20 बजे दायर एफआईआर में ऑल्ट न्यूज के पत्रकार मोहम्मद जुबैर, पत्रकार राना अयूब, मीडिया संगठन द वायर, कांग्रेस नेता सलमान निजामी, मशकूर उस्मानी, शमा मोहम्मद, लेखिका सबा नकवी और ट्विटर इंक एवं ट्विटर कम्युनिकेशंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड नामजद हैं.
इसके अलावा यूपी की गाजियाबाद पुलिस ने समाजवादी पार्टी के नेता उम्मेद पहलवान इदरीसी के खिलाफ पीड़ित बुजुर्ग अब्दुल समद सैफी के साथ फेसबुक लाइव वीडियो में दिखाई देने के लिए एक प्राथमिकी दर्ज की है.
साथ ही दिल्ली के तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन में अमित आचार्य नाम के व्यक्ति ने इसे लेकर शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें अभिनेत्री स्वरा भास्कर, ट्विटर के एमडी मनीष माहेश्वरी, द वायर की वरिष्ठ संपादक आरफा खानम शेरवानी, ट्विटर इंक, ट्विटर इंडिया और आसिफ खान का नाम है.
यह वीडियो 13 जून की शाम को सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था.
वीडियो के वायरल होने के बावूजद इस वीडियो को ट्वीट करने के लिए तीन पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के यूपी पुलिस के फैसले की आरएसएफ ने आलोचना की.
आरएसएफ ने कहा, ‘पत्रकारों पर दंगा भड़काने के लिए उकसाना, धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने, धार्मिक विश्वासों का अपमान करना, सार्वजनिक शरारती, आपराधिक साजिश और अपराध करने की आम मंशा के आरोप लगाए गए हैं.’
आरएसएफ के अध्ययन के अनुसार, प्रत्येक पत्रकार को नौ साल और छह महीने की जेल की संभावित संयुक्त सजा का सामना करना पड़ सकता है.
आरएसएफ के एशिया पैसिफिक डेस्क के प्रमुख डेनियल बैस्टर्ड ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा लगाया गया आरोप किसी ठोस तत्व पर आधारित नहीं है और स्पष्ट रूप से न्यायिक उत्पीड़न के बराबर है.’
उन्होंने कहा, हम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस बेतुकी एफआईआर में नामजद पत्रकारों के खिलाफ आरोपों को तत्काल प्रभाव से वापस लेने का आदेश देकर विश्वसनीयता बहला करने का आग्रह करते हैं.
आरएसएफ के 2021 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 180 देशों में से 142वें स्थान पर है. आरएसएफ मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा में विशेषज्ञता रखने में पारंगत विश्व की सबसे बड़ी संस्था है.
द वायर और अन्य के खिलाफ एफआईआर का मकसद रिपोर्टिंग रोकना: एडिटर्स गिल्ड
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) ने गुरुवार को मांग की कि सोशल मीडिया पर एक बुजुर्ग मुसलमान व्यक्ति की वीडियो पोस्ट करने के लिए एक समाचार पोर्टल और कुछ पत्रकारों के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर फौरन वापस ली जाए.
उसने कहा, ‘स्वतंत्र मीडिया को प्रताड़ित करने के लिए रिपोर्टिंग और असहमति का अपराधीकरण करने के वास्ते कानून का यह अनियंत्रित इस्तेमाल निंदनीय है.’
ईजीआई ने बयान में कहा, ‘एडिटर्स गिल्ड द वायर और कई पत्रकारों पर पांच जून को गाजियाबाद में एक बुजुर्ग मुस्लिम व्यक्ति पर हमले पर किए उनके ट्वीट को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने की निंदा करता है. इसे फौरन वापस लिया जाए.’
गिल्ड ने कहा, ‘पुलिस द्वारा आरोपी लोगों के अलावा कई मीडिया संगठनों और पत्रकारों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर इस वीडियो को पोस्ट किया. इसके बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने घटना को एक अलग रूप देते हुए दावा किया कि यह हमला ‘ताबीज’ से जुड़े एक विवाद का नतीजा था, जो बुजुर्ग व्यक्ति ने कुछ लोगों को बेचा था.’
ईजीआई ने कहा, ‘गिल्ड पत्रकारों को बदले की कार्रवाई के डर के बिना गंभीर घटनाओं की रिपोर्टिंग करने से रोकने के लिए उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के उत्तर प्रदेश पुलिस के पिछले रिकॉर्ड से बहुत चिंतित है.’
गिल्ड ने कहा कि यह पत्रकारों का कर्तव्य है कि वह सूत्रों के आधार पर रिपोर्ट करें और अगर बाद में तथ्य विवादित पाए जाते हैं तो उनकी भी जानकारी दें.
ईजीआई ने कहा, ‘साथ ही यह भी देखा गया है कि पुलिस का रवैया उन मीडिया संगठनों और पत्रकारों को निशाना बनाने में भेदभावपूर्ण रहा है जो सरकार तथा उसकी नीतियों के आलोचक रहे हैं जबकि हजारों लोगों ने वीडियो ट्वीट की थी.’
हेट क्राइम की रिपोर्टिंग करना अपराध नहीं: मुंबई प्रेस क्लब
मुंबई प्रेस क्लब ने भी उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा द वायर और कुछ पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के फैसले की निंदा की है.
प्रेस क्लब ने कहा कि यह एफआईआर दर्शाती है कि सच्चाई उजागर करने के लिए उत्तर प्रदेश में न्यूज मीडिया का लगातार उत्पीड़न किया जा रहा है.
मुंबई प्रेस क्लब ने ‘रिपोर्टिंग हेट क्राइम्स इज नॉट अ क्राइम’ शीर्षक से बयान जारी कर कहा, ‘यूपी में मीडिया को लगातार निशाना बनाए जाने पर विचार करते हुए प्रेस क्लब केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से यूपी सरकार और उसके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांतों और खबर की रिपोर्टिंग करने के अधिकार के बारे में शिक्षित करें.’
डिजिपब ने द वायर और अन्य के ख़िलाफ़ दर्ज मामले की निंदा की
डिजिपब न्यूज मीडिया फाउंडेशन ने भी उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा तीन पत्रकारों सबा नकवी, राना अयूब और मोहम्मद जुबैर सहित द वायर के खिलाफ दर्ज एफआईआर की कड़ी निंदा करते हुए बयान जारी किया है.
डिजिपब ने बयान जारी कर उत्तर प्रदेश सरकार से तुरंत एफआईआर को वापस लेने और समाचार संगठनों को बिना डरे अपना काम करने देने को कहा है.
डिजिपब ने इस मामले में यूपी पुलिस द्वारा कुछ व्यक्तियों और समाचार प्रकाशनों को निशाना बनए जाने पर भी चिंता जताई है.
बयान में कहा गया, ‘उत्तर प्रदेश पुलिस उन लोगों के लिए खतरा बनी हुई है, जो अपराध पीड़ितों की आवाजों को उठाते हैं. ऐसा माहौल तैयार करने की कोशिश की जा रही है, जिसमें सभी पत्रकार और समाचार संगठनों को रिपोर्टिंग करने से रोका जा सके और वे सिर्फ आधिकारिक वर्जन ही रिपोर्ट कर सकें.’
बयान में कहा गया, ‘मामले की दुर्भावनापूर्ण प्रकृति संविधान द्वारा गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को कमजोर करती है.’
डिजिपब 60 से अधिक स्वतंत्र डिजिटल प्रकाशनों का एक संघ है, जिसमें ऑल्ट न्यूज, आर्टिकल 14, बूमलाइव, कोबरापोस्ट, एचडब्ल्यू न्यूज, न्यूजक्लिक, न्यूजलॉन्ड्री, द न्यूज मिनट, द क्विंट, स्क्रॉल डॉट इन और द वायर शामिल हैं.