नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को कहा कि झूठी खबरों के दौर में सच ‘शिकार’ बन गया है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सीजेआई ने कहा कि सोशल मीडिया के प्रसार के साथ ही कई बार जो कुछ कहा या सुना जाता है, उसकी तार्किक आधार पर पुष्टि कभी नहीं कर सकते.
सीजेआई ने कहा कि आज हम एक ऐसे युग में रहते हैं, जहां लोगों में धैर्य और सहिष्णुता की कमी है, क्योंकि वे ऐसे नजरिये को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं, जो उनके नजरिये से अलग हो.
जस्टिस चंद्रचूड़ नई दिल्ली में ‘अमेरिकन बार एसोसिएशन इंडिया कॉन्फ्रेंस 2023’ में ‘लॉ इन द एज ऑफ ग्लोबलाइजेशन: कंवर्जेंस ऑफ इंडिया एंड वेस्ट’ विषय पर बोल रहे थे.
उन्होंने कहा, ‘झूठी खबरों के दौर में सच शिकार बन गया है. सोशल मीडिया के प्रसार के साथ ही जो कुछ भी एक बीज के रूप में कहा जाता है, वह असल में एक पूरे सिद्धांत में अंकुरित हो जाता है, जिसका कभी तर्कसंगत विज्ञान की कसौटी पर परीक्षण नहीं किया जा सकता है.’
सीजेआई ने प्रौद्योगिकी और न्यायपालिका द्वारा खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान इसका इस्तेमाल, न्यायिक पेशे के सामने आने वाले मसले तथा अधिक महिला न्यायाधीशों समेत विभिन्न मुद्दों पर अपनी बात रखी.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि भारतीय संविधान वैश्वीकरण का एक प्रमुख उदाहरण है और यह हमारे वैश्वीकरण के युग में प्रवेश करने से पहले से है.
उन्होंने कहा कि जब संविधान का मसौदा तैयार किया गया था, तो इसके निर्माताओं को संभवत: इस बात का अंदाजा नहीं था कि मानवता किस दिशा में विकसित होगी.
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास गोपनीयता की धारणा नहीं थी, कोई इंटरनेट नहीं था. हम उस दुनिया में नहीं रहते थे, जिसे एल्गोरिदम द्वारा नियंत्रित किया जाता था. हमारे पास निश्चित रूप से सोशल मीडिया नहीं था.’
सीजेआई ने कहा, ‘आप जो भी करते हैं, उसके लिए आप किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा ट्रोल किए जाने के खतरे का सामना करते हैं, जो आपकी बात से सहमत नहीं है. हम जज भी इसके अपवाद नहीं हैं.’
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी के अलावा और भी महत्वपूर्ण मसले हैं, जिनमें कानूनी पेशे में सुधार करना शामिल है. कई मायनों में हमारा पेशा अभी भी पितृसत्तात्मक है, हमारा पेशा सामंती है, हमारा पेशा रिश्तेदारी और समुदाय के रिश्तों पर बना है.
सीजेआई ने कहा कि उनसे अक्सर पूछा जाता है कि देश में अधिक महिला न्यायाधीश क्यों नहीं हो सकते.
उन्होंने कहा कि समावेश और विविधता के मामले में आज हमारे संस्थान की स्थिति दो दशक पहले पेशे की स्थिति को दर्शाती है.
उन्होंने कहा, ‘क्योंकि जो जज आज (2023 में) हाईकोर्ट में आते हैं, या जो 2023 में सुप्रीम कोर्ट में आते हैं, वे इस सदी के शुरुआत में बार की स्थिति को दर्शाते हैं.’
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जब तक 2000 और 2023 के बीच न्यायिक पेशे में प्रवेश करने और कामयाब होने के लिए महिलाओं के लिए समान अवसर नहीं होते, तब तक कोई ऐसी जादू की छड़ी नहीं है, जिसके द्वारा आप 2023 में महिलाओं के बीच से शीर्ष अदालत में जज ले आएं.
उन्होंने कहा, ‘इसलिए हमें आज अधिक विविध और समावेशी पेशे के लिए एक ढांचा तैयार करना होगा, अगर हमें वास्तव में ऐसा भविष्य बनाना है, जहां हमारा पेशा अधिक समावेशी और विविध हो.’
सीजेआई ने कहा कि भारत में जिला न्यायपालिका में हाल ही में हुईं भर्तियों के आंकड़े बताते हैं कि कई राज्यों में 50 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं.