आईआईटी जैसे तकनीकी और गैर-तकनीकी उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा का माध्यम हिंदी होने की संसदीय समिति की सिफारिश का राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने कड़ा विरोध किया है. टीआरएस, जो तेलंगाना भावना का एकमात्र सच्चा प्रतिनिधि होने का दावा करती है, ने सिफारिश का विरोध करते हुए कहा कि यह हिंदी को थोपने के किसी भी कदम के खिलाफ है. पार्टी का विचार है कि भारत की कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है और हिंदी कई आधिकारिक भाषाओं में से एक है.
टीआरएस, जिसने हाल ही में अपना नाम भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलकर राष्ट्रीय होने का फैसला किया, ने इस मुद्दे को आड़े हाथों ले लिया. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह संघवाद पर अपना ध्यान केंद्रित करने के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है. नरेंद्र मोदी सरकार की कटु आलोचक टीआरएस का मानना है कि केंद्र संघीय भावना की धज्जियां उड़ा रहा है. यह दृढ़ विचार है कि भारतीयों के पास भाषा का विकल्प होना चाहिए.
तेलंगाना को अपने वास्तविक महानगरीय स्वरूप के कारण एक मिनी-इंडिया माना जाता है. यहां की भाषा भावनाएं तमिलनाडु या कर्नाटक की तरह मजबूत नहीं हैं, लेकिन यहां हाल के दिनों में हिंदी को थोपने के प्रयासों का कड़ा विरोध हुआ है. टीआरएस ने इस कदम का विरोध करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है.
टीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामा राव ने मोदी को पत्र लिखकर केंद्रीय विश्वविद्यालयों सहित सभी तकनीकी और गैर-तकनीकी शिक्षण संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने के कदम का कड़ा विरोध किया. रामा राव (जिन्हें केटीआर के नाम से भी जाना जाता है) ने संसदीय समिति की सिफारिश को असंवैधानिक करार दिया और मांग की, कि इसे वापस लिया जाना चाहिए.