भगवान शिव को गंगाजल, रूद्राक्ष और भष्म अति प्रिय है। भस्म तो महदेव को इतना पसंद है कि पूरे शरीर पर लगाये घुमते रहते हैं, यही कारण है कि महादेव भस्मांग भी कहलाते हैं। शिव पुराण के अनुसार जो व्यक्ति नियमित अपने माथे पर भस्म से त्रिपुण्ड यानी तीन रेखाएं सिर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक धारण करता है उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति शिव कृपा का पात्र बन जाता है।
शिव पुराण में बताया गया है कि त्रिपुण्ड की हर रेखा में नौ देवताओं का वास होता है। इसलिए जो व्यक्ति त्रिपुण्ड भस्म धारण करते हैं उनसे 27 देवता प्रसन्न रहते हैं। भस्म धारण के विषय में बताया गया है कि मोक्ष और भोग यानी धन वैभव की इच्छा रखने वाले व्यक्तियों को अपने शरीर के सोलह अंगों में भस्म लगाना चाहिए।
मस्तक, ललाट, कण्ठ, दोनों कंधों, दोनों भुजाओं, दोनों कोहनियों, दोनों कलाईयों, हृदय, नाभि, दोनों पसलियों एवं पीठ यह सोलह स्थान हैं जहां भस्म लगाना चाहिए। इन सभी अंगों पर अलग-अलग देवताओं का वास होता है। भस्म धारण करते समय व्यक्ति को भगवान शिव का ध्यान करते हुए ‘नमः शिवाय’ मंत्र का जप करना चाहिए। जो लोग नियमित ललाट पर भस्म लगाते हैं उनका आज्ञाचक्र जागृत होता है और बौद्घिक एवं स्मरण शक्ति बढ़ती है।
कैसा भस्म प्रयोग करें
भस्म जली हुई वस्तुओं का राख होता है। लेकिन सभी राख भस्म के रूप में प्रयोग करने योग्य नहीं होता है। भस्म के तौर पर उन्हीं राख का प्रयोग करना चाहिए जो पवित्र कार्य के लिए किये गये हवन अथवा यज्ञ से प्राप्त हो।