ईसाई पंरपरा के महान पैगम्बर यहेजकेल नदी के किनारे पर खड़े हुए थे। वे ध्यान-अवस्था में चले गए। उस अवस्था में जब वह नदी के पानी में देख रहे थे तो उन्हें सात स्वर्गों और फरिश्तों के अलौकिक दृश्य दिखाई दिए। प्रभु की शान उनके आगे प्रकट हुई। यह अनुभव उन्हें पानी को निहारते हुए हुआ।
संदेश है कि प्रभु को हम अपनी आत्मा में देख सकते हैं। अनेक लोग सोचते हैं कि प्रभु वह सत्ता है जिसका अस्तित्व हमसे बाहर है। ध्यान स्थिति ऐसी ही है। यह आत्मा में देखने का अभ्यास है ताकि हम परमात्मा को पा सकें। अपनी आत्मा को जानने की प्रक्रिया है ताकि परमात्मा को जान सकें।
अपने भीतर ही परमात्मा को देखने के लिए अपने हृदय के दर्पण को साफ करना जरूरी है। हमें प्रभु को देखने के लिए� सिर्फ उन परतों के पार देखना होगा जो हमारे ऊपर इकट्ठी हो चुकी हैं। हम ध्यान-अभ्यास पर बैठकर अपनी पुरानी परतों को हटा सकते हैं। तब धीरे-धीरे दर्पण साफ हो सकता है।
हम वहाँ पर प्रभु की निर्मल ज्योति परावर्तित होती देख सकते हैं। हम पाएंगे कि प्रभु हर समय हमारे अंतर में है और इंतजार कर रहे हैं कि हम उस तक पहुंचें। जैसे कि दर्पण में दिखाई देते राजा में और वास्तव में दिखाई देते राजा में कोई अंतर नहीं था, ऐसे ही सार्वभौमिक प्रभु में और आत्मा में बसे प्रभु में कोई अंतर नहीं है।
हम सदाचारी जीवन, निःस्वार्थ सेवा और ध्यान-अभ्यास के द्वारा अपने हृदय को साफ कर सकते हैं। तब हम अपने हृदय के दर्पण में देख पाएंगे। वहां पर प्रभु को देख पाएंगे।