देवों में सर्वप्रथम पूज्य भगवान गणोश की आराधना का पर्व गणेश चतुर्थी निकट आ गया है। महाराष्ट्र का यह पर्व अब पूरे देश में मनाया जाने लगा है। ताजनगरी में भी पंडाल सजाने और घरों में विघ्नविनाशक को लाने की तैयारियों में श्रद्धालु जुट गए हैं।
गणेश चतुर्थी सोमवार को है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणोशोत्सव मनाया जाता है। घरों के साथ ही पंडालों में गणपति की स्थापना की जाती है। 10 दिन तक पूजा- अर्चना के बाद पूर्णमासी को देव प्रतिमाओं का शोभायात्र के रूप में विसर्जन किया जाएगा। कभी महाराष्ट्र तक सीमित रहे गणेशोत्सव की धूम आज पूरे देश में नजर आने लगी है। वर्ष दर वर्ष इसमें इजाफा होता जा रहा है। केवल तीन दिन शेष रहने से गणपति पंडाल सजाने और उन्हें घरों में स्थापित किए जाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं।
चौकी पर करें स्थापना-
पंडित किशनचंद वाजपेयी बताते हैं कि गणेश चतुर्थी के दिन सोमवार को सुबह 8:30 बजे प्रतिमा स्थापना का शुभ मुहूर्त है। इसके बाद पूरे दिन प्रतिमाएं स्थापित की जा सकेंगी। भगवान गणेश की प्रतिमा को चौकी पर स्थापित करें और मोदक (लड्डू) का भोग लगाएं।
भगवान गणेश की प्रतिमाओं के रेट साइज के हिसाब से दुकानदारों ने तय कर रखे हैं। नामनेर में सजीं दुकानों में प्रतिमाओं की कीमत इस प्रकार निर्धारित की गई है।
पीओपी से बने भगवान गणेश
साढ़े सात फीट ऊंचे लालबाग के राजा17500 रुपये, साढ़े छह फीट के सिंहासन पर विराजमान गणेश 16500 रुपये, तीन फीट ऊंचे मूषक पर विराजमान गणेश12500 रुपये, बाल गणेशा1500 रुपये, मिट्टी से बनाए गए भगवान गणेश छह फीट ऊंचे गणेश – 5000 रुपये, छोटे गणेश- 300 से 1000 रुपये।
आगरा कॉलेज में प्राणि विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. केएस राना बताते हैं कि मनुष्य को धर्म के नाम पर धर्माध बनकर प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। पीओपी (प्लास्टर ऑफ पेरिस) पानी में घुलनशील नहीं है। वहीं, प्रतिमाओं को रंगने में यूज किए जाने वाले पेंट्स में हेवी मैटल्स और टॉक्सीकेंट होते हैं, जो पानी में जहर का काम करते हैं। प्रतिमाओं को विसर्जित न कर अन्य विकल्प पर विचार करना चाहिए।
पर्यावरण संरक्षण को करें यह जतन-पीओपी से बनीं भगवान गणेश की प्रतिमाओं की अपेक्षा मिट्टी से बनीं प्रतिमाओं की स्थापना करें। ऐसी प्रतिमाएं लें, जिन पर ऑयल पेंट्स की जगह वाटर कलर का इस्तेमाल किया गया हो। इसके साथ ही लकड़ी और धातु से बनीं भगवान गणेश की प्रतिमाएं भी पर्यावरण संरक्षण में सहायक हो सकती हैं।
पहले की अपेक्षा अब भगवान गणेश की प्रतिमाओं की मांग बढ़ी है। आज से पांच- छह वर्ष पूर्व कुछ ही प्रतिमाएं बिकती थीं, लेकिन आज डिमांड कई गुना बढ़ गई है। फीरोजाबाद, मैनपुरी, बाड़ी से भी श्रद्धालु प्रतिमाएं खरीदने आते हैं। नीरज कुमार, दुकानदारआज मिट्टी बड़ी मुश्किल से मिलती है। मिट्टी से प्रतिमाएं बनाना पीओपी की तुलना में बड़ा दुष्कर है। मिट्टी की जहां दिन भर में एक ही प्रतिमा बन पाती है, वहीं पीओपी की 10 प्रतिमाएं बन जाती हैं। पीओपी मिट्टी से सस्ती भी है।