नई दिल्ली: तमिलनाडु में डीएमके सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को राज्य के विभिन्न हिस्सों में रूट मार्च करने की अनुमति देने के मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.
हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने बीते 10 फरवरी को एकल-न्यायाधीश की पीठ द्वारा 4 नवंबर 2022 को दिए उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें प्रस्तावित राज्यव्यापी रूट मार्च पर शर्तें लगाई गई थीं और इसे बंद जगह में आयोजित करने को कहा गया था.
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने 22 सितंबर 2022 के अपने पुराने आदेश को बहाल कर दिया था, जिसमें पुलिस को मार्च निकालने और सार्वजनिक सभा के लिए अनुमति देने का निर्देश देते हुए कहा गया था कि सार्वजनिक स्थानों पर इस तरह के जुलूसों का आयोजन करना संगठन के मौलिक अधिकार के भीतर है, जिसमें सार्वजनिक सड़कें और बैठकें भी शामिल हैं क्योंकि वे संवैधानिक योजना के दायरे में आती हैं.’
जस्टिस आर. महादेवन और मोहम्मद शफीक की पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि ‘स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विरोध प्रदर्शन जरूरी है. भले ही राज्य को प्रतिबंध लगाने का अधिकार है, लेकिन यह उन्हें पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं कर सकता है, केवल उचित प्रतिबंध लगाता है.’
इसमें कहा गया था कि ‘चूंकि संगठन को सार्वजनिक स्थान पर शांतिपूर्ण जुलूस और बैठकें आयोजित करने का अधिकार है, इसलिए राज्य नए खुफिया इनपुट की आड़ में ऐसी कोई शर्त नहीं लगा सकता है जिससे कानून और व्यवस्था की समस्या का हवाला देते हुए संगठन के मौलिक अधिकारों का लगातार उल्लंघन हो.’
यह इंगित करते हुए कि ‘कानून और व्यवस्था बनाए रखना राज्य का कर्तव्य है’, हाईकोर्ट ने कहा था, ‘कानूनी दावे के लिए पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करना भी राज्य का कर्तव्य है.’
अदालत ने कहा था, ‘हमारा विचार है कि राज्य के अधिकारियों को बोलने, अभिव्यक्ति और सभा करने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को बनाए रखने के लिए कार्य करना चाहिए, जिसे कि हमारे संविधान के सबसे पवित्र अधिकारों में से एक माना जाता है.’