नई दिल्ली: देश में ‘जनसंख्या विस्फोट’ को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय कानून बनाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया. सरकार से जवाब मांगते हुए जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस जे. के. माहेश्वरी की पीठ ने याचिका को भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर इसी तरह की याचिका के साथ टैग किया. अधिवक्ता आशुतोष दुबे के माध्यम से दायर जनहित याचिका (पीआईएल) ने संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 के तहत गारंटीकृत मूल अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए केंद्र से निर्देश मांगा है.
याचिका में कहा गया है, “जनसंख्या विस्फोट हमारी अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग की दयनीय स्थिति का भी मूल कारण है. हम ग्लोबल हंगर इंडेक्स (वैश्विक स्तर पर भुखमरी के लिए सूचकांक) में 103वें, आत्महत्या दर में 43वें, साक्षरता दर में 168वें, विश्व खुशहाली सूचकांक में 133वें, लिंग भेदभाव में 125वें, न्यूनतम वेतन के मामले में 124वें, रोजगार दर में 42वें, कानून लागू करने के सूचकांक में 69वें, जीवन गुणवत्ता सूचकांक में 43वें, वित्तीय विकास सूचकांक में 51वें, पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में 177वें और प्रति व्यक्ति जीडीपी में 139वें स्थान पर हैं.”
याचिका में आगे कहा गया है, “नागरिकों, विशेष रूप से महिलाओं को पहुंचने वाली पीड़ा बहुत बड़ी है. अर्थव्यवस्था पर जनसंख्या विस्फोट के खतरों और इसके प्रभावों पर अक्सर चर्चा की जाती है, लेकिन महिला पर बार-बार होने वाले बच्चे के असर को शायद ही कभी विशिष्ट क्षेत्रों के बाहर उजागर किया जाता है. भारत जैसे विकासशील देशों में 4 से अधिक व्यवहार्य जन्मों के रूप में परिभाषित ग्रैंड मल्टीपैरिटी की घटना 20 प्रतिशत है जबकि विकसित देशों में यह केवल 2 प्रतिशत है. बार-बार गर्भधारण के दुष्परिणाम महिलाओं और नवजात शिशुओं दोनों पर विनाशकारी होते हैं. भारत में, गर्भवती माताओं में कुपोषण-एनीमिया व्याप्त है. बार-बार गर्भधारण करने से यह उनके स्वास्थ्य को खतरे में डाल देता है और गर्भावस्था के प्रतिकूल परिणामों की ओर ले जाता है. ऐसी माताओं में गर्भपात का खतरा भी बढ़ जाता है. बार-बार गर्भधारण करने से माताओं को संक्रमण का खतरा अधिक हो जाता है.”