सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को घोषणा पत्रों के कथ्य के नियमन के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देते हुये कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी घोषणा पत्रों में मुफ्त उपहार देने के वायदे किए जाने से स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों की बुनियाद हिल जाती है।
न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने कहा कि चुनावी घोषणा पत्र चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले प्रकाशित होते हैं, ऐसे में आयोग इसे अपवाद के रूप में आचार संहिता के दायरे में ला सकता है। फैसले का व्यापक प्रभाव हो सकता है और राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में लैपटॉप, टेलीविजन, ग्राइंडर, मिक्सर, बिजली के पंखे, चार ग्राम की सोने की थाली और मुफ्त अनाज मुहैया कराने जैसे वायदे किए जाने पर रोक लग सकती है।
पीठ ने कहा कि चुनावी घोषणापत्र के कथ्य के नियमन के लिए कोई दिशा निर्देश नहीं है। हम चुनाव आयोग को इस पर दिशा निर्देश तैयार करने का निर्देश देते हैं। इसने कहा कि हम चुनाव आयोग को इस दिशा में तत्काल काम करने का निर्देश देते हैं।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर अलग से कानून बनाया जाना चाहिए। इसने कहा कि मुफ्त उपहार देने के राजनीतिक दलों के वायदों से चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों का स्तर प्रभावित होता है और चुनावी प्रक्रिया दूषित होती है।
पीठ ने हालांकि, मतदाताओं को मुफ्त में घरेलू चीजें दिए जाने के अन्नाद्रमुक के चुनावी वायदे के कार्यान्वयन के जयललिता सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि वर्तमान कानून के तहत घोषणापत्र में मुफ्त उपहार देने का वायदा करना भ्रष्टाचार की गतिविधि में नहीं आता।
याचिका अधिवक्ता एस सुब्रमण्यम बालाजी ने दायर की थी, जिसमें मुफ्त उपहार देने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने कहा था कि इस तरह की लोक लुभावन घोषणाएं न सिर्फ असंवैधानिक हैं, बल्कि इससे सरकारी खजाने पर भी भारी बोझ पड़ता है।
बालाजी ने तर्क दिया था कि तमिलनाडु सरकार द्वारा की गई मुफ्त उपहारों की पेशकश मतदाताओं को रिश्वत देने के बराबर है और यह स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने की संविधान की भावना के खिलाफ है।