नाग हमारे शरीर में मूलाधार चक्र में स्थित हैं। उनका फन सहस्रार चक्र है। लिंग पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा ने उग्र तपस्या की। परिणाम नहीं मिला तो हताशा में उनकी आंखों से आंसू आ गए। आंसू की वहीं बूंदें सर्प बन गई। सर्पों के साथ कोई अन्याय न हो इसलिए तिथियों का बंटवारा करते समय सूर्य ने इन्हें पंचमी तिथि का अधिकारी बनाया।
तभी से पंचमी तिथि, नागों की पूजा के लिए विदित है। इसके बाद ब्रह्मा ने अष्टनागों अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, कुलिक, और शंखपाल की सृष्टि की। इनमें अनंत नाग सूर्य के, वासुकि चंद्रमा तक्षक भौम के, कर्कोटक बुध पद्म बृहस्पति, महापद्म शुक्र शंखपाल शनि ग्रह के रूप हैं।
नाग भय से मुक्ति के लिए करें यह उपाय
ये सभी नाग� सृष्टि संचालन में ग्रहों के समान ही भूमिका निभाते हैं। सम्मान में रूद्र इन्हें यज्ञोपवीत के रूप में, महादेव श्रृंगार के रूप में तथा विष्णु शैय्या रूप में इनकी सेवा लेते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शेषनाग स्वयं पृथ्वी को अपने फन पर धारण करते हैं।
गृह निर्माण, पितृ दोष और कुल की उन्नति के लिए नाग पूजा का और भी अधिक महत्व है। इनकी पूजा आराधना से सर्पदंश का भय नहीं रहता। नाग पंचमी के दिन नाग की पूजा और उन्हें दूध पिलाने का विशेष महत्व है।पूजा में ”ॐ सर्पेभ्यो नमः” अथवा ”ॐ कुरु कुल्ले फट स्वाहा” कहते हुए अपनी शक्ति-सामर्थ्य के अनुसार गंध, अक्षत, पुष्प, घी, खीर, दूध, पंचामृत, धुप दीप नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए।
नाग को मारने पर नागिन लेती है बदला?
मंत्र में नाग पूजा करते हुए कहा जाता है कि� जो नाग, पृथ्वी, आकाश, स्वर्ण, सूर्य की किरणों, सरोवरों, कूप तथा तालाब आदि में निवास करते हैं। वे सब हम पर प्रसन्न हों, हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं इस प्रकार नागपंचमी के दिन सर्पों की पूजा करके प्राणी सर्प एवं विष के भय से मुक्त हो सकता है।