सम्बन्धों को निभाया जाता है, उनमें आपको केवल देना होता है। जितना आपसे संभव है आप दूसरे को उतना देते हैं और फिर उनसे कुछ वापस पाने की प्रतीक्षा करते हैं। आपकी यह मांग संबंधों को अधिक समय तक टिकने नहीं देती। मांग और आरोप रिश्तों को बिगाड़ देते हैं। इसलिए आपको उनकी प्रशंसा करना आना चाहिए।
उनकी गलतियां निकालकर उन पर आरोप लगाने की बजाय परिस्थिति को सुधारना चाहिए। दूसरे को ऊपर उठाने के लिए आप प्रतिबद्ध रहें – तभी आप किसी के लिए भी लायक बन पाएंगे। जब आप जानबूझकर दूसरों को चोट नहीं पहुंचाएंगे तो आपको सब अपनाएंगे। यह याद रखने वाली पहली बात है।
दूसरी बात यह है कि आप खुद को बदलने के लिए और अपने को सुधारने के लिए तैयार रहें जिसके लिए आपको अपनी आलोचना सुनने का धैर्य होना चाहिए। तीसरा बात है कि, दूसरों के दृष्टिकोण को जानिए, उनकी पीड़ा को समझिए, उनके शब्दों या कृत्यों को नजरअंदाज करके उस व्यक्ति को जानिए।
आठ-दस घंटे काम करने के बाद जब कोई थका हुआ वापस घर आता है या जब एक व्यापारी शेयर बाजार में हुए घाटे से परेशान होकर घर लौटता है तो वह घर में आराम और शान्ति चाहता है। अपने साथी की परिस्थिति को समझकर उन्हें अपनी भावना, कुंठा या क्रोध आदि को व्यक्त करने की स्वतन्त्रता दीजिए।
जैसे एक दाई प्रसूति में मदद करती है वैसे ही ऐसे समय में जीवनसाथी उनकी मदद करें। कोई प्रसव पीड़ा में हो और उनसे कहें कि आप शिशु को बाहर मत आने दो, अंदर ही रहने दो तो वह क्या करेगा? कितनी देर शिशु को अंदर रख पाएगा – आखिर तो वो बाहर निकलेगा ही। ऐसे ही पति या पत्नी को तनाव से खाली होने का अवसर दीजिए।
वो क्यों दुःखी या परेशान है – उसको समझने का प्रयास करें तो आपके रिश्ते मधुर होंगे। परन्तु यदि आप यह अपेक्षा रखते हैं कि आपके साथी आपसे कभी कुछ न कहे चौबीस घंटे, सप्ताह के सातों दिन, साल के 365 दिन वह मधुर व्यवहार रखें और आप हमेशा उनके दोष देखें, ताने मारें कि तुम ऐसे हो, तुम वैसे हो तो वह बेचारे क्या करेगें?
उनको लगेगा कि वह बिलकुल अकेले हैं, उनको कोई सहारा नहीं देता। फिर वह जीवन में आगे कैसे बढ़ेंगे, सफल कैसे होंगे वह निराश हो जाएंगे। व्यक्ति वो महान है जिसमें दूसरों को स्वीकार करने, धैर्यपूर्वक सहने व निभाने की ज़्यादा से ज़्यादा क्षमता हो। यदि यह स्वीकृति केवल दस प्रतिशत है तो आप दुःखी और परेशान रहेंगे।
और यदि यह स्वीकृति शून्य प्रतिशत है तो जीवन में आप उन्नति कर ही नहीं पायेंगे – इसलिए बुद्धिमत्ता इसी में है कि अपने धैर्य को शून्य से शत-प्रतिशत तक बढ़ने दे। एक और बात है कि संबंधों में थोड़ी छूट दे दें। संबंधों की मजबूती बीच के कंटीले राहों को स्वीकार करने की क्षमता में है। ऐसी परिस्थिति को आप कैसे भली भांति संभालते हैं इसी में आपकी कुशलता बढ़ती है।
ये सद्गुण उन कंटीले राहों के दौरान ही प्रकट होते हैं। ऐसे समय को अपने धैर्य, समझदारी, विचारशीलता, और स्वीकृति के गुण लाने का अवसर समझें। दूसरे व्यक्ति से बदलने की अपेक्षा रखने की बजाय अपना श्रेष्ठ चरित्र प्रदर्शन कीजिए।