एक नदी को बहने के लिए दो किनारों की आवश्यकता होती है। बाढ़ तथा बहती हुई नदी में यह अन्तर है कि बहती हुई नदी का पानी एक विशेष दिशा में बहता है, जबकि बाढ़ की अवस्था में पानी बिना किसी क्रम के दिशाविहीन होकर बहता है। इसी प्रकार हमारे जीवन में यदि ऊर्जा को कोई दिशा नहीं प्रदान की जाती तो यह दिग्भ्रमित हो जाती है। जीवन की ऊर्जा के प्रवाह के लिए एक दिशा की आवश्यकता होती है।
जब तुम प्रसन्न होते हो तो तुम्हारे अन्दर अत्यधिक जीवन ऊर्जा होती है, लेकिन जब जीवन ऊर्जा यह नहीं जानती है कि कहाँ और कैसे जाना है तब यह अवरूद्घ होकर जड़ हो जाती है। जिस प्रकार जल की धारा को बहते रहना है उसी प्रकार जीवन की धारा को भी चलते रहना है। जीवन ऊर्जा को एक दिशा में चलने के लिए एक बचनबद्घता आवश्यक है। जीवन बचनबद्घता के साथ चलता है। एक विद्यार्थी किसी स्कूल या कालेज में एक बचनबद्घता के साथ प्रवेश लेता है।
तुम एक डाक्टर के पास एक बचनबद्घता के साथ जाते हो कि डाक्टर जो कुछ उपचार बताता है, उसको सुनते हो या उसके द्वारा दी गई औषधि को लेते हो। बैंक एक बचनबद्घता के साथ कार्य करते हैं। सरकार भी एक बचनबद्घता के साथ कार्य करती है।
यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि एक परिवार भी बचनबद्घता के साथ चलता है, माँ बच्चे के साथ प्रतिबद्घ है व बच्चा अपने मॉ-बाप के प्रति प्रतिबद्घ है। पति-पत्नी के साथ और पत्नी-पति के साथ बचनबद्घ है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में चाहे वह प्यार हो या व्यवसाय हो या मित्रता हो, बचनबद्घता अवश्य होती है।
वास्तव में तुम्हें बचनबद्घता न होने से क्रोध होता है। तुम किसी से किसी प्रकार की बचनबद्घता की आशा रखते हो और जब वे नहीं करते हैं तो तुम मानसिक हलचल से ग्रसित हो जाते हो। यह जब कोई अपनी बचनबद्घता का पालन नहीं करता है तो भी तुम मानसिक हलचल से ग्रसित हो जाते हो। लेकिन तुम देखो कि तुमने अपने जीवन में कितनी बचनबद्घताओं को लिया है और उनका पालन किया है।
हमारी शक्ति या कार्यकुशलता हमारी बचनबद्घता के समानुपाती होता है। यदि तुम अपने परिवार का पालन-पोषण करने की बचनबद्घता लेते हो तो तुम्हें उतनी शक्ति या क्षमता प्राप्त होती है। यदि तुम्हारी बचनबद्घता किसी समुदाय के प्रति है तो तुम्हें उतनी अधिक मात्रा में शक्ति प्रसन्नता और क्षमता प्राप्त होती है। जितनी अधिक बचनबद्घता का तुम वहन करते हो, उतनी ही अधिक शक्ति तुम्हें उस बचनबद्घता का वहन करने के लिए प्राप्त होती है।
छोटी प्रतिबद्घता तुम्हें घुटन देती है, क्योंकि तुम्हारी क्षमता बहुत अधिक है, लेकिन तुम एक छोटे से छिद्र में फंसे हुए हो। जब तुम्हारे पास दस कार्य करने के लिए होते हैं और यदि एक कार्य गलत हो जाता है तो तुम बाकी कार्यों को करते रह सकते हो। लेकिन यदि तुम्हारे पास केवल एक ही कार्य करने के लिए होता है और वह अगर गलत हो जाता है तो तुम उसी से चिपके रह जाते हो।
प्रायः हम यह सोचते हैं कि पहले हमारे पास कार्य के स्रोत हों तब हम कोई भी कार्य करने के लिए बचनबद्घ होंगे। वास्तव में यह ऐसा नहीं है। तुम जितना ही बड़ा कार्य करने की बचनबद्घता करोगे उतने ही बड़े स्रोत स्वमेय ही प्राप्त हो जाएंगे। जब तुम्हारे अन्दर किसी कार्य को करने का विचार आता है तो जब भी और जितना भी आवश्यक होता है उसके लिए स्रोत तुमको मिल जाते हैं।
जो तुम कर सकते हो उसको करने में तुम्हारा कोई विकास नहीं होता है। अपनी क्षमता के बाहर हाथ-पैर फैलाने से तुम्हारा विकास होता है। यदि तुममें अपने शहर की देखभाल करने की क्षमता है और तुम यह कार्य करते हो तो यह कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन यदि तुम इसको और अधिक विस्तृत करते हुए अपने पूरे प्रदेश की देखभाल करने की बचनबद्घता करते हो तो तुम्हें उतनी ही अधिक शक्ति प्राप्त होती है।
जैसे ही तुम और अधिक उत्तरदायित्व लेते हो तुम्हारी क्षमता भी बढ़ जाती है। तुम्हारी बुद्घिमता भी बढ़ जाती है, तुम्हारी प्रसन्नता बढ़ जाती है और तुम दैविक शक्ति के साथ एकीकृत हो जाते हो। जिस किसी भी क्षमता में तुम अपने समाज पर्यावरण और इस प्रकृति के लिए कुछ करते हो उतना ही तुम्हारे अन्दर भौतिक तथा आध्यात्मिक विकास होता है। तुम्हारा हृदय इस अनुभव के साथ खुल जाता है कि तुम हर एक का हिस्सा हो।
साभारः आर्ट ऑफ लिविंग