महाभारत और पुराणों के रचयिता और गुरूओं के भी गुरू कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा सोमवार 22 जुलाई के दिन है। इस तिथि को गुरू पूर्णिम के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा अपने विकास की समीक्षा का दिन है। हम सभी को इस दिन का लाभ उठाना चाहिए।
समीक्षा आपको प्रोत्साहित करती है। यदि आपको लगता है कि आपने आध्यात्मिकता के पथ पर गत कुछ वर्षो में कोई विकास नही किया है तो आपने ज्ञान का प्रयोग नही किया है। यदि आप कहीं अटक गये है तो यह जान लीजिए की आपका विकास भी अटक गया है।
हम सभी को यह याद रखना चाहिए कि गुरू पूर्णिमा वह दिन है जब भक्त पूर्ण कृतज्ञता से भर जाता है और महान ज्ञान के प्रति अपना सम्मान प्रकट करता है, जो उसे अपने गुरु से प्राप्त हुआ है। यह समय है इस बात की समीक्षा करने का कि आप कितना ज्ञान में जीते है और आपने जीवन में कितना ज्ञान अर्जित किया है।
यह अनुभव आपमें विकास का आधार बन सकता है जो कि आपमें विनम्रता लाता है। इस मार्ग के प्रति, जो कि आपके जीवन में इतना परिवर्तन लेकर आया है कृतज्ञ हो जाएं। बस थोड़ा सा यह सोचें कि इस ज्ञान के बिना आप कैसे हो सकते थे।
इसका विचार करके गुरु पूर्णिमा पर पूर्व में हुये सभी गुरुओं को याद करे। जब आपका जीवन पूर्ण होता है, तब आप में कृतज्ञता आती है, तब आप गुरु के साथ आरंभ होते है और और जीवन में प्रत्येक वस्तु की प्राप्ति पर समाप्त होते हैं। गुरु पूर्णिमा पर हर भक्त कृतज्ञता में जागता है। भक्त एक अंतरिम सागर की तरह अनुभव करता है। गुरु पूर्णिमा भक्ति में विकास और कृतज्ञता का उत्सव है।