नई दिल्ली: विधि आयोग ने बुधवार (25 अक्टूबर) को देश में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव पर विचार कर रहे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाले उच्च स्तरीय आयोग को संविधान में आवश्यक संभावित बदलावों सहित एक रोडमैप पेश किया.
आयोग ने कहा कि प्रस्ताव को केवल 2029 के लोकसभा चुनावों तक ही मूर्त रूप दिया जा सकता है, क्योंकि समय के साथ, यह संबंधित राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को बढ़ाकर या घटाकर सभी विधानसभा चुनावों को एक साथ करने का एक फॉर्मूला तैयार करेगा. इस संबंध में विधि आयोग की एक रिपोर्ट अभी भी लंबित है और इसे कोविंद आयोग द्वारा एक और दौर की चर्चा के लिए फिर से आमंत्रित किया जाएगा.
जहां विधि आयोग विधानसभा और संसदीय चुनाव एक साथ कराने के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है, वहीं पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता वाला आयोग विधानसभा, संसद, नगर पालिका और पंचायत चुनावों को एक साथ कराने के तरीके तलाश रहा है.
कानून मंत्रालय की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि कोविंद पैनल को आधिकारिक तौर पर ‘एक देश, एक चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी)’ का नाम दिया गया है.
एचएलसी पहले ही देश भर के राजनीतिक दलों को इस मामले पर उनके विचार जानने के लिए पत्र लिख चुका है. अब तक छह राष्ट्रीय दलों, 33 क्षेत्रीय दलों और 7 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दलों को पत्र भेजे जा चुके हैं.
बुधवार की बैठक में एचएलसी ने समिति की सदस्यता से अधीर रंजन चौधरी के इस्तीफे का संज्ञान लिया.
बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आज़ाद; कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल; 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह; पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष सी. कश्यप; वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे; और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल हुए.
2 सितंबर को जारी आधिकारिक अधिसूचना में कोविंद आयोग का गठन करते हुए सरकार ने कहा था कि अब तक बार-बार चुनाव कराने के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर खर्च, चुनावी कार्यों के लिए आधिकारिक मशीनरी का उपयोग और आदर्श आचार संहिता के कारण विकासात्मक गतिविधियों में व्यवधान हुआ है. इसलिए यदि एक साथ चुनाव होते हैं तो इन तीनों से निपटा जा सकता है.
हालांकि, सरकार को एक देश, एक चुनाव के प्रस्ताव के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हुए पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने कहा था कि इससे और भी अधिक सार्थक और ठोस चुनाव सुधार हैं जिन पर संसद को तत्काल ध्यान देने की जरूरत है.
लवासा ने कहा था कि सरकार द्वारा ‘एक देश एक चुनाव’ के पक्ष में दिए गए कारण ‘सहज अनुमानों’ से अधिक कुछ नहीं हैं जो ‘महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले निर्णय लेने के लिए पर्याप्त आधार नहीं बना सकते हैं.’