सनावद-पैदल परिक्रमा धारियों से जब भी प्रश्न किया कि तपोभूमि नर्मदा के किनारे कौन से सिद्ध संत विराजते हैं तो सभी ने सियाराम बाबा का नाम तो बताया ही था। सियाराम बाबा से ओंकारेश्वर से महेश्वर मार्ग पर सनावद और फिर बेड़िया गाँव होकर तेली भट्टियाण गाँव में मिला जा सकता है। पैदल परिक्रमा कर रहे पुण्यात्माएँ उनके दर्शन सहज ही मार्ग पर कर लेते हैं पर गाड़ी से परिक्रमा करने वालों को यह मार्ग और आश्रम चुनना होता है। मुझे मेरी गाड़ी की परिक्रमा में यह स्थान छूट गया तो केवल बाबा के दर्शन हेतु जयपुर से दुबारा गया और दर्शन लाभ किए। उसके बाद दो तीन बार और भी जाने का सुख मिला।
नर्मदा घाट की पचास साठ सीढ़ियाँ चढ़कर आश्रम के सामने स्थित प्राचीन विशाल पीपल वृक्ष और गाँव की सड़क का लेवल आता है। उसके ऊपर बीस एक सीढ़ियाँ चढ़कर बाबा का आश्रम आ जाता है। आश्रम के नाम बाबा का एक पंद्रह बीस फ़ीट का छोटा सा कक्ष है। जहां के दरवाज़े पर एक पत्थर की छोटी सी पट्टिका में अंकित है – सियाराम बाबा पर्णकुटी।
कमरा छोटा तो है ही वहाँ की व्यवस्था और रखे गए सामान की वजह से वह एक छोटी कुटिया के रूप में ही दिखायी देती है। प्रवेश करते ही बाबा का एक छोटा सा आसान और आसान के सामने ही टेबल आकार की बड़ी रामचरितमानस की पोथी और उसका वाचन करते हुए सियाराम बाबा। गोलमटोल चेहरा – वस्त्र के नाम तन पर एक लंगोट मात्र। उम्र सौ से अधिक वैसे साधु संतों की उम्र और सिद्धियों का आकलन और अनुमान करना हम साधारण ग्रहस्थ लोगों के लिए ना वांछनीय है और ना अपेक्षित।
कुटिया में बाबा के दैनिक उपयोग के सामान के अतिरिक्त प्रसाद और कुछ सामान भी दिखायी पड़ता है। सामने की दीवार पर एक टीवी भी दिखायी पड़ता है जिस पर रामानन्द सागर की रामायण के एपिसोड दिखायी देते हैं। बाबा कुछ प्रसंगों को स्वयं भी देखते है और रीमोट से उसका संचालन भी करते हैं। पूरे समय आश्रम के आसान से अखंड रामायण पाठ / राम चरित मानस पाठ की रस धारा तो सदैव प्रवाहित रहती ही है। बाबा सौ की उम्र पार कर भी बिना चश्मे के अपना नित्यकर्म पूजा पाठ और ध्यान करते हैं। इन दिनों कई बार बाबा चश्मा पहने भी नज़र आते है जिसकी आवश्यकता शायद उन्हें अब भी नहीं है।
बाबा के तेली भट्टियाण में पहुँचने पर आपने बारह वर्ष मौन तप किया। जब तप पूरा हुआ तो बाबा ने “सीताराम “ उच्चारण” किया और वहाँ के उत्सुक और आनंदित भक्तों ने तब से आपका नाम सीताराम बाबा ही रख दिया। सीताराम। इससे पूर्व के स्थान , बाबा के जन्म , परिवार और शेष पृष्ठ भूमि के बारे में आज भी किसी को कुछ पता नहीं है और ना ही बाबा ने किसी को कोई जानकारी दी है। सीताराम !
बाबा ने अब तक घोर तप और साधना की है और वे दस बरस की एक खडेश्वरी साधना भी कर चुके हैं।
बाबा का यह शरीर तप और भक्ति में इतना अधिक डूबा हुआ है कि उनके रोम रोम से हनुमान की तरह सीताराम ही प्रस्फुटित होता है। वे सीताराम के अखंड साधक और भक्त हैं। हनुमान जी महाराज उनके पूज्य साधन और अंतिम श्रेष्ठ साध्य दोनों हैं। इसीलिए बाबा के अनेक भक्त उन्हें स्वयं को ही चिरंजीवी हनुमान के रूप में ही पाकर दर्शन प्राप्त कर धन्य हो जाते हैं। सीताराम।
बाबा से मैं जब मिलने तेली भट्टियाण पहुँचा तो वे पर्ण कुटिया पर नहीं विराज रहे थे। नर्मदा की ओर देखा तो बाबा स्नान करके जल की बाल्टी लेकर सीड़ियों पर चढ़ते नज़र आए और मन प्रफुल्लित हो गया। बाबा की कमर बिल्कुल झुक गयी है। इस उमर में भी बाल्टी , नर्मदा जल , और शरीर की सीमाओं का कोई प्रभाव दिखाई नहीं देता है और बाबा बहुत सारी लम्बी चौड़ी और गहरी सीढ़ियों को चढ़कर पर्ण कुटी पहुँच जाते हैं। जबकि उनके पैरों में अनेक पट्टियाँ बंधी हुयी थीं। ना साँस फूली और ना थकान हुयी। जबकि मेरे सहित अनेक भक्तों की साँस फूल रही थी।
बाबा ने आसान ग्रहण करते ही भक्तों को प्रसाद और आशीर्वाद देना शुरू किया। बाबा भक्तों से केवल दस रू की दक्षिणा ही स्वीकारते हैं। कोई अधिक देता है तो भी उसे शेष राशि लौटा देते हैं।चढ़ाए गए फल फूल , मिठाई और सामान भी भक्तों को ही वितरित कर देते हैं। इतना सब पाकर भी बाबा लोक कल्याण के अनेक सेवा कार्य करते रहते हैं। अपने इष्ट देवी देवता के अनेक मंदिरों में महँगा चढ़ावा चढ़ा देते हैं। सेवा कर देते हैं। सीताराम।
बाबा जिस आश्रम में जहां विराजते हैं वहाँ भी एक पिछवाड़े में दरवाज़ा है जहां अनेक परिक्रमावासी रुके हुए थे और उनकी भोजन प्रसादी तैयार हो रही थी।
इतना ही देखकर बाहर अस जाता हूँ बाबा को चरण स्पर्श करके और आशीर्वाद प्राप्त करके।
बाहर भी अनेक भक्त और परिक्रमावासी सुस्ता रहे होते हैं। एक बड़ा टीन शेड इनकी सुविधा के लिए यहाँ लगा दिया है ! आश्रम , सड़क और नर्मदा घाट के बीच ऊँचे चबूतरे में एक प्राचीन एक पीपल वृक्ष आज भी खड़ा हुआ है। जिसके नीचे हनुमान जी का एक मंदिर है ! आज भी भक्त गण वहाँ दीप और अगरबत्ती से पूजन करके अपना सिर झुकाते हैं। मन्नतें माँगते हैं और पूरी होने पर फिर लौटकर और ढोककर जाते हैं। नर्मदा की कढ़ाई करते हैं। कन्याओं का पूजन करते हैं और उन्हें भोजन और दक्षिणा भी देते हैं। नर्मदा स्वरूपा कन्याएँ यहाँ हमेशा सुलभ रहती हैं।
इस चबूतरे से नर्मदा का घाट और उस पार का घाट और नावों की यात्रा कर रहे भक्त और घाटों में स्नान कर रहे यात्रियों का सुंदर और सुरम्य नज़ारे की साक्षी मिलती है। नर्मदे हर सीताराम। जय सियाराम बाबा।
प्रभाकर गोस्वामी, जयपुर की फेसबुक वाल से