Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/load.php on line 926

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826
 श्री हरिगोबिंद साहिब: मीरी-पीरी के मालिक | dharmpath.com

Friday , 22 November 2024

Home » धर्म-अध्यात्म » श्री हरिगोबिंद साहिब: मीरी-पीरी के मालिक

श्री हरिगोबिंद साहिब: मीरी-पीरी के मालिक

July 9, 2013 1:54 am by: Category: धर्म-अध्यात्म Comments Off on श्री हरिगोबिंद साहिब: मीरी-पीरी के मालिक A+ / A-

सिखों के छठे गुरु एवं अकाल तख्त के संस्थापक श्री हरिगोबिंद साहिब का संदेश था कि आध्यात्मिक मूल्यों (पीरी) के साथ राजनीतिक शक्ति (मीरी) भी प्राप्त करनी चाहिए।

पांचवें गुरु और पिता के बलिदान के बाद मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में गुरु हरिगोबिंद साहिब ने सिखों का नेतृत्व संभाला। अत्याचारियों से संघर्ष करने के लिए गुरु जी ने सिखों को शस्त्रधारी बनाने का कार्य आरंभ किया। गुरु-गद्दी पर विराजमान होते समय छठम गुरु ने दो तलवारें धारण कीं। एक ‘मीरी’ अर्थात राजनीतिक शक्ति की और दूसरी ‘पीरी’ अर्थात अध्यात्मिक शक्ति की। गुरु जी ने सिखों को संदेश दिया कि उच्च आध्यात्मिक मूल्य धारण करने के साथ-साथ शारीरिक और राजनीतिक शक्ति भी प्राप्त करें।

गुरु जी के आदेशानुसार सिखों को घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी, नेजेबाजी (भाले से युद्ध कला) आदि का अभ्यास करा सैनिक प्रशिक्षण दिया जाने लगा। शारीरिक शक्ति बढ़ाने के लिए ‘मल्ल अखाड़े’ करवाए जाने लगे। कवि और ढाडी वीर रस की कविताओं और ‘वारों’ (साहसिक कथाओं) द्वारा सिखों के मन में उत्साह जगाने लगे।

इस तरह बहुत ही कम समय में एक बड़ी सिख सेना तैयार हो गई। गुरु जी ने अमृतसर में लौहगढ़ नाम का एक किला भी बनवाया। गुरु जी ने 2 जुलाई 1609 ई. को हरिमंदिर साहिब के सामने ‘अकाल बुंगे’ का निर्माण शुरू करवाया। बादशाह के तख्त के मुकाबले इसे ‘अकाल तख्त’ कहा गया।

सिखों की सैनिक तैयारियों ने जहांगीर को चिंतित कर दिया। उसने गुरु साहिब को गिरफ्तार करके ग्वालियर के किले में भेज दिया। वहां पहले से ही 52 राजा बगावत के आरोप में कैद थे। गुरु जी ने जेल का भोजन लेने से इंकार कर दिया। वे एक घसियारे सिख हरिदास द्वारा परिश्रम से जुटाया गया भोजन ग्रहण करते रहे। गुरु जी की कैद ने सिखों को आक्रोशित कर दिया। सिख बाबा बुढ्डा जी एवं भाई गुरदास के नेतृत्व में जत्थे बनाकर ग्वालियर जाते और किले की दीवारों को चूमते, परिक्रमा करते और लौट आते। सिखों के शांतिपूर्ण आंदोलन और न्यायप्रिय सलाहकारों के समझाने पर जहांगीर गुरु जी को रिहा करने के लिए तैयार हो गया।

गुरु जी ने कहा कि वे सिर्फ तभी रिहा होंगे, जब 52 राजाओं को भी रिहा किया जाएगा। यहां जहांगीर ने एक चाल चली। उसने कहा कि जितने राजा गुरु जी का चोला पकड़कर बाहर आ जाएंगे, उन्हें रिहा कर दिया जाएगा। भाई हरिदास ने गुरु जी के लिए ऐसा चोला तैयार करवाया जिसमें 52 कलियां थीं। हर राजा ने एक-एक कली पकड़ी और किले से बाहर आकर मुक्त हो गए। तब से गुरु जी ‘बंदी छोड़ दाता’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

गुरु जी और मुगलों में चार युद्ध पिपली साहिब, अमृतसर का युद्ध (1629), हरगोबिंदपुर का युद्ध (1630), नथाणा का युद्ध (1631) एवं करतारपुर का युद्ध (1634) लड़े गए और इन चारों में गुरु हरिगोबिंद साहिब विजयी रहे।

गुरु जी ने इतने सारे महत्वपूर्ण कार्य मात्र 49 वर्ष की छोटी सी आयु में किये। गुरु परंपरा के अनुसार, छठे गुरु ने ज्योति जोत समाने से पांच दिन पूर्व अपने पौत्र गुरु हरिराय जी को गुरुगद्दी सौंप दी।

श्री हरिगोबिंद साहिब: मीरी-पीरी के मालिक Reviewed by on . सिखों के छठे गुरु एवं अकाल तख्त के संस्थापक श्री हरिगोबिंद साहिब का संदेश था कि आध्यात्मिक मूल्यों (पीरी) के साथ राजनीतिक शक्ति (मीरी) भी प्राप्त करनी चाहिए। पा सिखों के छठे गुरु एवं अकाल तख्त के संस्थापक श्री हरिगोबिंद साहिब का संदेश था कि आध्यात्मिक मूल्यों (पीरी) के साथ राजनीतिक शक्ति (मीरी) भी प्राप्त करनी चाहिए। पा Rating: 0
scroll to top