नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने महिला सुरक्षा बिल आज लोकसभा में पेश कर दिया. शिंदे ने कहा है कि इस बिल में महिलाओं की सुरक्षा पर सभी दलों की तरफ से आए सुझावों को शामिल किया गया है.
विधेयक में सहमति के साथ यौन संबंध बनाने के लिए न्यूनतम उम्र 18 वर्ष रखी गई है. इसके लिए केंद्र सरकार पर भारी राजनीतिक दबाव था. कई दल सेक्स की उम्र 16 किए जाने के खिलाफ थे.
सोमवार को सभी दलों की बैठक में मतभेद को देखते हुए सरकार सहमति से सेक्स की उम्र 16 की जगह 18 करने पर राजी हो गई थी. सर्वदलीय बैठक में शामिल हुई पार्टियां इस फैसले के लिए वाहवाही लूटने की कोशिश में लगी हैं.
इसके अलावा पीछा करना और ताक-झांक को जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है. यानी कि इन मामलों में पुलिस थाने से ही जमानत मिल जाएगी.
सहमति से सेक्स की सीमा पर सरकार का रुख नरम पड़ा है. सभी दलों की बैठक में सरकार उम्र सीमा 18 करने पर राजी हो गई है लेकिन उसमें कुछ शर्तें जोड़ दी हैं.
अगर लड़की 16 की हो और लड़का भी 16 से ऊपर लेकिन 18 से नीचे का हो तो ऐसे में पहले ऑफेंस में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और सुधरने का मौका दिया जाएगा. दूसरे ऑफेंस में जुवेनाइल जस्टिस के तहत मामला चलेगा. अगर लड़का 18 से ऊपर हुआ तो अपराध माना जाएगा, लेकिन घूरने और स्टॉकिंग के मामले में पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाएगी.
विरोध के बाद कैबिनेट ने जो संशोधन किए हैं उसके मुताबिक अब निजी पलों में ताकझांक को गैरजमानती से जमानती अपराध बनाया गया है. यानी आरोपी को पुलिस के पास से जमानत मिल सकती है. पहले गैरजमानती होने का मतलब था कि गिरफ्तारी तय थी और कोर्ट में पेश होने के बाद ही आरोपी को जमानत मिलती. इसी तरह से पीछा करने को पहली बार जमानती और फिर गैरजमानती अपराध बनाया गया है.
आपको बताते हैं इस बिल से जुड़ी गलतफहमियां जिसने सरकार को मुश्किल में डाला और जिस वजह से देश भर में विरोध भी हुए:
पहली गलतफहमी: सहमति से सेक्स की उम्र 16 या 18?
हकीकत ये है कि देश में 1973 से ही सहमति से सेक्स की उम्र 16 है . ये आईपीसी की धारा-375 में साफ तौर पर बताया गया है. तब से लेकर पिछले साल दिसंबर तक यही कानून चलता रहा और किसी ने एतराज भी नहीं किया.
चार दिसंबर 2012 को गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने संसद में आपराधिक कानून संशोधन बिल पेश किया. इसमें भी सहमति से सेक्स की उम्र 18 मानी गई. यहां तक कि जस्टिस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद इसी साल सरकार जो अध्यादेश लेकर लाई उसमें भी सहमति से सेक्स की उम्र 18 की रखी गई .
लेकिन अध्यादेश की जगह सरकार जो संशोधित बिल संसद में रखने जा रही है उसमें सहमति से सेक्स की उम्र को 18 से घटाकर 16 कर दिया गया.
इसका ही विरोध हो रहा है. हैरत की बात है कि तीन महीने पहले तक देश में सहमति से सेक्स की उम्र 16 थी जिसपर किसी को ऐतराज न था लेकिन सरकार ने पहले इसे 16 से बढ़ाकर 18 किया और फिर वापस 16 करना चाहा तो देश में बवाल मच गया.
दूसरी गलतफहमी: पीछा करने पर जेल
आम धारणा है कि अब तो किसी महिला का पीछा करने पर भी जेल में जाना पड़ेगा और जमानत के लाले पड़ेंगे. हर जगह यही चर्चा है लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है. बिल में आईपीसी की धारा-354 डी में संशोधन किया गया है .
इसके अनुसार अगर कोई किसी महिला के पीछे ही पड़ जाए जिससे कि महिला की मानसिक शांति भंग हो जाए या उसमें डर बैठ जाए या उसे पीछा करने वाले से जान का खतरा महसूस हो तो ऐसे केस मे आरोपी को एक से तीन साल तक की सजा हो सकती है. उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
तीसरी गलतफहमी: घूरने पर जेल
नए बिल को लेकर कहा जा रहा है कि भई अब तो किसी महिला को देखने या घूरने पर भी जेल की हवा खानी पड़ेगी. ये एक गैर जमानती अपराध होगा. लेकिन सच ये नहीं है.
आईपीसी की धारा-354 सी में संशोधन किया गया है. इसके अनुसार किसी महिला को उस आपत्तिजनक अवस्था में देखना या उसकी तस्वीर उतारना जहां कि महिला अपनी प्राइवेसी चाहती हो तो ऐसा काम करने वाले को एक से तीन साल तक की सजा और साथ में जुर्माना हो सकता है. ये अपराध दोहराने पर सजा तीन से सात साल तक की हो सकती है.
वैसे सड़क पर जाती किसी महिला को देखने पर ये धारा लागू नहीं होती है. अगर कोई किसी महिला की सहमति से उसकी आपत्तिजनक तस्वीरे उतारता है लेकिन महिला की मर्जी के खिलाफ उसका प्रचार प्रसार करता है तो उसे एक से तीन साल तक की सजा हो सकती है .
अब सरकार बीच का रास्ता निकाल रही है. लेकिन सवाल ये है कि अगर सरकार ने उम्र सीमा पर जारी गलतफहमियों को पहले ही साफ कर दिया होता तो ऐसी नौबत ही नहीं आती.