धर्मशाला। पालमपुर-जयसिंहपुर सड़क पर खैरा गांव में माता सती सुन्यारी का मंदिर लोगाें की आस्था व श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। कहते हैं कि माता सूनी गोद भरती हैं।
माता सुन्यारी 1772 में इस स्थान पर अपने पति सुन्यार के साथ चिता में जलकर सती हुई थी। यह दंपती खैरा के साथ गांव सुन्यार खौला में रहता था। 1772 में पति के देहांत पर पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए इस स्थान पर लाया गया, जहां आज माता सुन्यारी की देहरी विद्यमान है। माता सुन्यारी निसंतान थी। वह पति को गोद में लेकर सती होने के लिए चिता पर बैठ गई, लेकिन चिता को अग्नि देने वाला कोई नहीं था। माता सुन्यारी ने चिता पर बैठकर कहा कि जो पुरुष उसके पति की चिता को मुखाग्नि देगा, उसे वह मनवांछित वरदान देगी। माता की इस गुहार को सुनकर खैरा के बुजुर्ग मियां जैमल सिंह कटोच, जो स्वयं भी निसंतान थे, ने मुखाग्नि देना स्वीकार किया। जैसे ही मियां जैमल ने मुखाग्नि दी तो माता सुन्यारी ने उन्हें दो पुत्र और एक पुत्री पैदा होने का वरदान दिया। उनसे आग्रह किया कि वह इसी दिन ज्येष्ठ मास के नौ प्रविष्टे अगले वर्ष से इस स्थान पर छिंज (कुश्ती) मेले का आयोजन अवश्य करें।
माता सुन्यारी के वरदान से अगले वर्ष मियां जैमल को पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। उन्होंने श्रद्धा के साथ मां सुन्यारी का पहला छिंज मेला वर्ष 1773 में करवाया। तब से यह हर वर्ष इस मेले का आयोजन हर वर्ष हो रहा है। मंदिर के रखरखाव के लिए स्थानीय स्तर पर सुधार सभा सुन्यारी मां का गठन किया है। परंपरा के अनुसार 26 से 27 मई तक मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान यहां आने वाले हजारों श्रद्धालु मां का आशीर्वाद लेने के साथ मेले का भी आनंद उठाते हैं।