दो हट्टे-कट्टे युवा संन्यासी शाम को अपने आश्रम की ओर लौट रहे थे। वे गेरुए वस्त्रों में और नंगे पैर थे। थोड़ी देर पहले ही बारिश हुई थी और सड़कों पर जगह-जगह पानी भर गया था। अचानक उनकी नजर एक सुंदर युवती पर पड़ी, जो नए कपड़े पहनकर कहीं जा रही थी। वह सड़क पार करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन चूंकि सड़क पर अधिक पानी भरा हुआ था इसलिए सड़क पार नहीं कर पा रही थी। उसे असमंजस में देख एक संन्यासी ने दूसरे से कहा- हमें उसकी मदद करनी चाहिए.। दूसरा बोला- लेकिन हम तो संन्यासी हैं, वह लड़की.। पहला संन्यासी उसकी बात को नजरअंदाज करके उस युवती के पास पहुंच गया और बोला- मैं आपको सड़क पार करा देता हूं। युवती ने अनुमति दी तो उस संन्यासी ने लड़की को गोद में उठाकर सड़क पार करा दी।
शाम को जब दूसरा संन्यासी पहले संन्यासी से मिला, तो वह बोला- तुमने उस लड़की को अपनी गोद में उठाया था, जबकि संन्यासियों को महिलाओं को छूना भी नहीं चाहिए, तुमने ऐसा क्यों किया? तो पहला संन्यासी बोला- मैंने तो उस युवती को उठाकर सड़क के दूसरी ओर छोड़ दिया था, लेकिन लगता है तुम उसे अब भी उठाए हुए हो। तुम भी उसे छोड़ दो।
कथा-मर्म: अच्छे आचरण के लिए दिखावा करने के बजाय मानसिकता का शुद्ध होता अति आवश्यक है।