नई दिल्ली-सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन को उनकी विवादास्पद टिप्पणी – ‘सनातन धर्म’ को खत्म कर देना चाहिए, के लिए फटकार लगाई. यह कहते हुए कि उन्होंने अपने बोलने की आज़ादी के अधिकार का दुरुपयोग किया है और पूछा कि क्या उन्हें अपनी टिप्पणियों के परिणामों के बारे में पता भी है.
उल्लेखनीय है कि पिछले साल 2 सितंबर को तमिलनाडु प्रगतिशील लेखक और कलाकार संघ द्वारा सनातन धर्म की अवधारणा पर बहस के लिए आयोजित ‘सनातन ओझिप्पु मानाडु’ (सनातन उन्मूलन सम्मेलन) शीर्षक सम्मेलन में तमिलनाडु कैबिनेट में मंत्री उदयनिधि ने कहा था कि सनातन धर्म डेंगू और मलेरिया की तरह है, जिसे खत्म करने की जरूरत है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जो दो न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे, ने उदयनिधि से पूछा, ‘आप अपने अनुच्छेद 19(1)(ए) के अधिकार का दुरुपयोग करते हैं. आप अपने अनुच्छेद 25 का दुरुपयोग करते हैं. अब आप अपने अनुच्छेद 32 का प्रयोग सही कर रहे हैं? क्या आप नहीं जानते कि आपने जो कहा उसका परिणाम क्या होगा?’
जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ उदयनिधि की याचिका पर सुनवाई कर रही थी कि उनकी टिप्पणियों पर विभिन्न राज्यों में दर्ज एफआईआर को एक साथ जोड़ दिया जाए क्योंकि उन सभी में कार्रवाई का कारण एक ही है.
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) नेता की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि वह मामले के गुण-दोष पर नहीं बल्कि केवल छह राज्यों में दर्ज एफआईआर को एक साथ जोड़ने की मांग कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि जिस कार्यक्रम में कथित तौर पर टिप्पणी की गई थी वह निजी कार्यक्रम था.
पीठ ने उन्हें संबंधित उच्च न्यायालयों में जाने का सुझाव दिया, जिस पर वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि उस स्थिति में उन्हें छह उच्च न्यायालयों में जाना होगा और लगातार इसमें बंधे रहेंगे.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने अनुच्छेद 32 का हवाला देते हुए कहा, ‘उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर और मुंबई में मेरे खिलाफ मामले हैं, जो मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार देता है.’