नई दिल्ली : बाजार नियामक सेबी ने बहुचर्चित सहारा मामले में उन व्यक्तिगत निवेशकों का पैसा वापस किए जाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है जिनका सत्यापन वह कर चुका है। यह मामला सहारा द्वारा ‘विभिन्न गैरकानूनी तरीकों’ से 24,000 करोड़ रुपये की राशि जुटाने से जुड़ा है।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने केवल उन निवेशकों को पैसा लौटाना शुरू किया है जिनके मामलों में सत्यापन प्रक्रिया के दौरान किसी तरह का दोहराव सामने नहीं आया। बाकी निवेशकों को रिफंड के लिए उच्चतम न्यायालय के आगामी निर्देशों तक इंतजार करना होगा। न्यायालय इस मामले पर 17 जुलाई को सुनवाई कर सकता है।
सहारा ग्रुप ने इस मामले में सेबी के पास 5,120 करोड़ रुपये जमा कराये थे और दावा किया है कि वह अपनी दो कंपनियों के बांडधारकों को 20,000 करोड़ रुपये पहले ही लौटा चुका है। निवेशकों का रिफंड सेबी के पास जमा कराई गयी राशि में से किया जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार सहारा का दावा है कि उसने उच्चतम न्यायालय के 31 अगस्त 2012 के आदेश से पहले ही सीधे तौर पर रिफंड किये थे। उसके इस दावे की स्वतंत्र रूप से पुष्टि अभी की जानी है।
सूत्रों का कहना है कि उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद सहारा ने सेबी को निवेशकों की जो सूचियां सौंपी हैं उनमें भी अनेक दोहराव व अन्य विसंगतियां देखने को मिली हैं।
सूत्रों के अनुसार ऐसे अनेक मामले हैं जहां किसी एक निवेशक का नाम सैकड़ों जगह आया है। इसके अलावा एक ही निवेश के अलग अलग पते या एक ही पता सैकड़ों निवेशकों के नाम दर्ज है। बाजार नियामक ने जिन सबसे बड़ी विसंगतियों का संदेह जताया है उनमें बड़ी संख्या में निवेशकों के ब्यौरे तथा पते की जानकारी नहीं होने का संदह है।
सूत्रों के अनुसार रिफंड उन असली निवेशकों को किया जा रहा है जिनके ब्यौरे का सत्यापन हो चुका है। हालांकि इस तरह के निवेशकों की संख्या बहुत छोटी है जबकि शुरआती दावा किया गया था कि सहारा समूह की इन कंपनियों ने 24,000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि तीन करोड़ बांडधारकों से जुटाई है।
सेबी ने पहले ही प्रवर्तन निदेशालय, भारतीय रिजर्व बैंक त्था अन्य सरकारी एजेंसियों से कहा है कि वे इस मामले में सहारा द्वारा नियमों के संभावित उल्लंघन की जांच करें जिसमें जिसमें जाली फम्रों के जरिए मनी लांड्रिंग की गतिविधि में शामिल होने की जांच भी शामिल हो सकती है।