रूस – जब ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन ने अपने देश की यूरोपीय संघ की सदस्यता पर जनमतसंग्रह कराया था, तब उन्हें यह कराने की जरूरत नहीं थी. उन्होंने वह कदम संवैधानिक आवश्यकता के तहत नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव में उठाया था. उन्होंने एक ऐसे प्रश्न को ‘हां’ या ‘ना’ के सीधे से वोट से जोड़ दिया जो बिल्कुल सरल नहीं था, और ऐसा करके उन्होंने अपने देश को एक ऐसी राजनीतिक उथल-पुथल में डाल दिया, जो अभी तक जारी है.
जनमतसंग्रहों के भी अप्रत्याशित जोखिम और दुष्प्रभाव हो सकते हैं और संभव है कि व्लादिमीर पुतिन को ये अब पता चले. उन्होंने अभी अभी लोगों से संविधान में संशोधनों का अनुमोदन कराया है.
जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक बड़े संवैधानिक सुधार पर रूस की जनता की राय लेने के जनमतसंग्रह की घोषणा की, तब उन्हें भी ऐसा करने की जरूरत नहीं थी. पुतिन ने भी संवैधानिक आवश्यकता के कारण नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव महसूस करते हुए ये कदम उठाया. उन्होंने ‘हां’ या ‘ना’ के एक सरल सवाल को एक अत्यंत पेचीदा मुद्दे के साथ जोड़ दिया. संवैधानिक सवाल हमेशा मुख्य रूप से सत्ता के सवाल होते हैं और ये उन चीजों को छूते हैं जो एक समाज को अंदर से जोड़ते हैं.