हिंदू संतों के एक संगठन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस हफ़्ते की शुरुआत में कहा कि वे राम जन्मभूमि आंदोलन की तर्ज पर वाराणसी और मथुरा के ‘हिंदू मंदिरों को मुक्त’ कराने के लिए अभियान शुरू करेंगे. इसके बाद आरएसएस ने कहा कि इसके लिए ज़ोर नहीं देगा.
नई दिल्ली- अयोध्या जमीन विवाद मामले में हिंदू पक्षकारों के पक्ष में फैसला आने के एक साल बाद कुछ दक्षिणपंथी समूहों ने बीते 5 अगस्त को राम मंदिर का शिलान्यास होने के बाद एक बार फिर से काशी और मथुरा में मंदिरों को ‘मुक्त कराने’ की बात शुरू कर दी है, जहां मस्जिद मौजूद हैं.
वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर की चाहरदीवारी पर ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है जबकि मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पास शाही ईदगाह मस्जिद है.
मस्जिदों को दासता के दो चिह्न बताते हुए भाजपा नेता और कर्नाटक में ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री केएस ईश्वरप्पा ने 5 अगस्त को कहा था कि गुलामी का प्रतीक हमारा ध्यान भंग करता है और बताता है कि आप गुलाम हैं.
उन्होंने अपना रुख दोहराया और कहा, ‘दुनिया भर के सभी हिंदुओं का सपना है कि गुलामी के उन प्रतीकों को अयोध्या की तर्ज पर हटा दिया जाए. मथुरा और काशी के मस्जिद भी नष्ट हो जाएंगे और मंदिरों का पुनर्निर्माण किया जाएगा.’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, हिंदू संतों के एक संगठन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (एबीएपी) ने सोमवार को कहा कि वे राम जन्मभूमि आंदोलन की तर्ज पर वाराणसी और मथुरा के ‘हिंदू मंदिरों को मुक्त” करने के लिए एक अभियान शुरू करेंगे.
इसके लिए प्रयागराज में परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की अध्यक्षता में सभी 13 अखाड़ों के प्रमुखों द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया गया. एबीएपी का निर्मोही अखाड़ा राम जन्मभूमि आंदोलन में शामिल था.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार गिरि ने कहा, ‘मुस्लिम हमलावरों और आतंकवादियों ने मुगल काल के दौरान हमारे मंदिरों को नष्ट कर दिया और मस्जिदों या मकबरों का निर्माण किया. जैसे संत समुदाय ने अयोध्या में राम जन्मभूमि के लिए एक अभियान चलाया और मामला सुलझ गया, हम वाराणसी और मथुरा में भी ऐसा करने के लिए दृढ़ हैं. अखाड़ा परिषद वाराणसी और मथुरा में भी हिंदू मंदिरों के विनाश से संबंधित एफआईआर दर्ज कराएगा.’
रिपोर्ट में कहा गया, उन्होंने कहा कि अखाड़ा विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे हिंदू संगठनों की मदद लेगा और मंदिरों को मुक्त करने के लिए एक सामूहिक कानूनी लड़ाई लड़ेंगे.
रिपोर्ट के अनुसार गिरि ने कहा, ‘वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में जमीन की खुदाई के दौरान अवशेषों से पुष्टि हुई कि हमारे मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था और इसके ऊपर एक मस्जिद बनाई गई थी. मथुरा में भी वही हुआ. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद मामले में एक पक्ष बनेगा और पूरी प्रतिबद्धता के साथ कानूनी लड़ाई लड़ेगा. हम कोई असंवैधानिक रास्ता नहीं अपनाएंगे. हमें पूरा विश्वास है कि फैसला हमारे पक्ष में होगा.’
हालांकि द हिंदू के अनुसार, मंगलवार को आरएसएस ने कहा कि एबीएपी द्वारा मामले को उठाने के लिए प्रस्ताव पास करने के बाद भी वह काशी और मथुरा में मंदिरों की मुक्ति के लिए जोर नहीं देगा.
बता दें कि 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान हजारों लोग नारा लगा रहे थे, यह तो केवल झांकी है, काशी, मथुरा बाकी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में स्थित मध्ययुगीन ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में हुआ था और औरंगजेब के शासन के दौरान पुनर्निर्मित किया गया था.
ऐसा भी कहा जाता है कि मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के शासन में 1669 के आस-पास हुआ था. लेखक-इतिहासकार ऑड्रे ट्रस्क ने अपनी किताब ‘औरंगजेब: द मैन एंड द मिथ’ में लिखा है, ‘मेरी समझ यह है कि ज्ञानवापी मस्जिद वास्तव में औरंगजेब के शासनकाल के दौरान बनाई गई थी. किबला दीवार की तरह ही मस्जिद में पुरानी विश्वनाथ मंदिर की संरचना शामिल है जिसे औरंगज़ेब के आदेश पर नष्ट कर दिया गया था. अगर मस्जिद औरंगज़ेब के काल से पहले की है तो हमें नहीं पता कि इसे किसने बनवाया था.’
शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर के बगल में स्थित है, जिसे हिंदू धर्म में भगवान कृष्ण की जन्मभूमि माना जाता है.
इतिहासकारों का मानना है कि औरंगज़ेब ने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को भी नष्ट कर दिया था और उसके आधार में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया.