भारतीय संस्कृति में प्रत्येक पर्व शास्त्रीय सिद्धांतानुसार मनाया जाता है। काल (समय) का जितना सूक्ष्म से सूक्ष्म अध्ययन और विश्लेषण भारतीय पंचांग विज्ञान में किया गया है, उतना विश्व में कहीं अन्यत्र नहीं हुआ है। भारतीय काल गणना में समय (काल) के पांच अंग – तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण की पंचआयामी (फाइव डी) विवेचना किए जाने के कारण ही इसकी पुस्तिका को ‘पंचांग’ कहा जाता है।
‘करण’ तिथि के आधे भाग को कहते हैं। पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्द्ध (प्रथमार्द्ध) में विष्टि (भद्रा) नामक करण होता है। ज्योतिष शास्त्र में ‘भद्रा’ को सर्पिणी के समान विषैली बताया गया है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने ‘भद्रा’ की अवधि को विषाक्त मानकर समस्त मांगलिक कार्यो में इसे निषिद्ध घोषित किया है। यह जानकारी देते हुए सुप्रसिद्ध पंचांगकर्ता डॉ अतुल टंडन ने बताया कि शास्त्रों का स्पष्ट निर्देश है कि रक्षाबंधन महापर्व ‘भद्रा’ से मुक्त निर्मल-निर्दोष श्रावणी पूर्णिमा में संपन्न होना चाहिए। भाई-बहन के स्नेहोत्सव (रक्षाबंधन) में राखी बांधने का शुभ कार्य भद्रा की अशुभ अवधि बीतने के बाद करना ही शास्त्रोचित एवं मंगलकारी सिद्ध होता है।
डॉ टंडन ने कहा कि भारत सरकार द्वारा मान्य विज्ञानसम्मत आधुनिक दृश्यगणितानुसार श्रावण मास की पूर्णिमा मंगलवार 20 अगस्त को प्रात: 10.21 बजे से प्रारम्भ होकर बुधवार 21 अगस्त को प्रात: 7.14 बजे तक रहेगी। मंगलवार सुबह 10.21 बजे से रात्रि 8.47 बजे तक मांगलिक कार्यो में वर्जित ‘भद्रा’ रहेगी। अत: मंगलवार को भद्रा के समाप्त हो जाने के पश्चात यानी रात्रि 8.47 के उपरांत ही रक्षाबंधन किया जाना शुभ फलदायक रहेगा।
बुधवार को श्रावणी पूर्णिमा सूर्योदय के समय व्याप्त होने के कारण ‘उदया तिथि’ के रूप में उपलब्ध हो रही है। उत्तर भारत के ज्यादातर अंचलों में ‘उदया तिथि’ की मान्यता होने के कारण बुधवार को पूरे दिन राखी बंधेगी, परन्तु इस दिन विशेष शुभ मुहूर्त सूर्योदय से प्रात: 7.14 बजे तक ही रहेगा। उदया तिथि में पर्व मनाए जाने की परंपरा के कारण रक्षाबंधन का मुख्य पर्वकाल बुधवार को ही होगा।