नई दिल्ली। रेलवे घूस कांड की जांच में सीबीआइ को अहम सफलता मिली है। घोटाले के एक आरोपी सुशील डागा को जांच एजेंसी सरकारी गवाह बनाने की तैयारी में है। जांच में डागा के सहयोग को देखते हुए सीबीआइ ने उसे गिरफ्तार न करने का फैसला किया है।
डागा उन तीन बिचौलियों में शामिल है, जो महेश कुमार के लिए 10 करोड़ रुपये की रिश्वत देने वाले नारायणराव मंजूनाथ और रेलमंत्री के भांजे विजय सिंगला के साथ सीधे संपर्क में था। वहीं आरोपी महेश कुमार की रेलवे बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्ति से संबंधित सारी फाइलें सीबीआइ ने कब्जे में ले ली है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आरोपियों से पूछताछ और फाइलों की जांच के बाद ही रेलमंत्री पवन बंसल से पूछताछ का फैसला लिया जाएगा।
सुशील डागा से सोमवार को सीबीआइ मुख्यालय में लंबी पूछताछ हुई। शुरू में डागा ने जांच अधिकारियों को बरगलाने की कोशिश की, लेकिन गिरफ्तारी की नौबत आने के बाद वह सच्चाई बताने के लिए तैयार हो गया। पूछताछ के दौरान जांच एजेंसी ने आधिकारिक रूप से डागा की गिरफ्तारी की खबर मीडिया को जारी भी कर दी थी। घोटाले की जांच और आरोपियों के खिलाफ शिकंजा कसने में डागा के सहयोग को सीबीआइ अधिकारी काफी अहम मान रहे हैं।
इस सिलसिले में सीबीआइ डागा को गवाह बनाकर मजिस्ट्रेट के सामने उसका बयान दर्ज कराने की तैयारी में है। अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत मजिस्टेट के सामने दिए बयान को सीबीआइ आरोपियों के खिलाफ सुबूत के रूप में पेश कर सकती है। दरअसल मंजूनाथ के लिए राहुल यादव के साथ सुशील डागा और समीर संधीर बिचौलिये का काम करते थे। इन्हीं तीनों के सहारे मंजूनाथ ने महेश कुमार को रेलवे बोर्ड में मेंबर (इलेक्टिकल) बनाने की डील विजय सिंगला से की थी। बाद में इन्हीं के मार्फत सिंगला के पास 90 लाख रुपये भेजे गए। जांच एजेंसी यह जानने की कोशिश कर रही है कि आखिर महेश कुमार की प्रोन्नति के बाद भी उनसे पश्चिमी रेलवे के महाप्रबंधक का प्रभार क्यों नहीं लिया गया।
सीबीआइ की एफआइआर के अनुसार विजय सिंगला के साथ डील में महेश कुमार को सदस्य (इलेक्टिकल) बनाए जाने तक पश्चिम रेलवे का महाप्रबंधक बनाए रखने के साथ सिग्नल और टेलीकम्यूनिकेशन का अतिरिक्त प्रभार भी दिया जाना था। लेकिन सिग्नल और टेलीकम्यूनिकेशन के प्रभार दिए जाने के पहले ही सीबीआइ ने घोटाले का पर्दाफाश कर दिया।