Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/load.php on line 926

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826
 प्रेम का उद्देश्य आनंद प्राप्तिः श्री श्री रविशंकर | dharmpath.com

Saturday , 23 November 2024

Home » धर्म-अध्यात्म » प्रेम का उद्देश्य आनंद प्राप्तिः श्री श्री रविशंकर

प्रेम का उद्देश्य आनंद प्राप्तिः श्री श्री रविशंकर

shri-shri-ravishanker-maharajभगवद्गीता में एक कहानी है। जब भगवान कृष्ण को भोजन परोसा जा रहा था, वे खड़े हुये और बोले, ‘‘नही, मुझे जाना है।‘‘ गोपियों ने उन्हें समझाने की कोशिस की। ‘‘पहले अपना भोजन तो करलो, ‘‘उन्होने विनती की। लेकिन वे बोले, ‘‘नही। मेरा एक भक्त मुश्किल में है और मुझे पुकार रहा है।

मुझे उसके लिये जाना होगा। ‘‘ऐसा कहकर वे तेजी से दौड़ पड़े लेकिन दरवाजे से ही वापस आ गये। ‘‘क्या हुआ‘‘ गोपियों ने पूछा। कृष्ण ने जवाब दिया, ‘‘पहले तो उसने सोचा कि मैं ही एक सहायक हूं और मुझे पुकारने लगा। लेकिन बाद में उसने सोचा कि कुछ और भी हैं जो उसकी मदद कर सकते है। इसलिए मैं इंतजार कर सकता हूं।‘‘

यह कहानी बताती है प्रार्थना की तीव्रता के बारे में। एक प्रार्थना का जन्म तब होता है जब आप पूर्णरुप से निसहाय अनुभव करते हो या पूर्ण रुप से कृतज्ञ हो। तीसरे तरह की प्रार्थना भी होती है जब आप पूर्ण विवेक में हो। तब आपको यह पता चलता है कि चेतना की गुणवत्ता अपनी सभी सीमाओं के परे चली गई है और बहुत ऊपर उठ गई है, उसकी दिशा पूर्णरुप से बदल गयी है जो कि पूर्णता देने वाली है, संपूर्ण ज्ञान से भरपूर है और पूरे विवेक और प्रेम से ओत-प्रोत हैं।

प्रायः लोग कहते हैं, ‘‘हृदय से प्रार्थना करो।‘‘ इससे काम नही चलने वाला जब आप बैचेनी में हो, इच्छा से भरे हुऐ हो और बिखरे हुये हो। आपको अपने अस्तित्व से प्रार्थना करनी होगी, दूसरे चक्र से। जब पूर्ण कृतज्ञ हो तब आप हृदय से प्रार्थना करो, लेकिन जब आप दयनीयता की स्थिति में हो तब आप हृदय से प्रार्थना नही कर सकते।

एक बार जब आप यह कहते हो, ‘‘ठीक है, मैनें सबकुछ छोड़ दिया, ‘‘तब आपकी प्रार्थना की तीव्रता पूर्ण हो जाती है। इसी तरह से इच्छा के ज्वर से बाहर निकला जा सकता है। आप अपने अस्तित्व से प्रार्थना करें। ये ही आपको सशक्त बनाती है, क्योंकि दिव्यता कमजोर के लिये बनी है।

इसीलिये उसे ‘दीनबंधु‘ कहते हैं। दीन का अर्थ है कमजोर, दयनीय, शक्तिहीन और निसहाय और बंधु का अर्थ है मित्र। इसीलिये आप प्रार्थना करते हैं, ‘‘अब मेरे पास कोई रास्ता नही है और मैं तनाव छोड़ देता हूं। मुझे सहायता की आवश्यकता है। ‘‘तभी आपके चारों ओर परिवर्तन होने लगते हैं।

प्रायः लोग पूछते हैं, ‘‘हम इतने सारे देवी देवताओं से प्रार्थना क्यों करते हैं? ‘‘दिव्यता (परमात्मा) एक ही है, लेकिन अनेक नामों से पुकारा जाता है। बस यही कारण है कि यही परमात्मा को भिन्न-भिन्न नामों, रुप, और रंगों से जगाया जाता है।

ईश्वर सबके हृदय में है, सब जगह है, आपके चारों ओर है और आपमें भी है। वह जानता है कि आपके लिये सबसे उत्तम क्या है और आपको जो सबसे अच्छा लगता है वही आपको देता है। प्रार्थना का अर्थ है दिल की गहराइयों से पुकारना। एक बच्चा रोता है तो कैसे रोता है? बच्चे अपनी मां के लिये पूरे शरीर से रोता है। उसके शरीर का एक एक कण और दिल का एक एक कोना कुछ मांगता है। पुकारना, पूरे दिल से पुकारना ही प्रार्थना है। जब हम अपने हृदय से कुछ करते है तो यही प्रार्थना होती है।

प्रार्थना की उच्च अवस्था ही ध्यान है। प्रार्थना का अर्थ है मांगना, ध्यान का अर्थ है सुनना। प्रार्थना आप कहते हैं, ‘‘मुझे ये दो, वो दो।‘‘ निर्देष देते हो, मांग करते हो। ध्यान में आप कहते हैं, ‘‘मै यहां पर हूं सुनने के लिये, जो कुछ भी आप बताना चाहते हैं मुझे बताएं।”

जब प्रार्थना अपने शिखर की ओर जाती है तब वह ध्यान हो जाता है। मौन प्रार्थना से बेहतर है। प्रायः प्रार्थना किसी भाषा में होती है-जर्मन, हिंदी, स्पेनिश, इंग्लिश। वास्तव में, इन सबका एक ही अर्थ है। लेकिन मौन इससे एक कदम आगे है, यह एक कदम भाषा की सीमा से परे हैं जिसे पूरा ब्रह्मांड समझता है। प्रकृति इसी से ही प्रदर्शित होती है।

प्रार्थना शब्द शक्ति है जो आपको हृदय के मौन की ओर ले जाती है। शब्द का उद्देश्य मौन का सृजन करना है। कर्म का उद्देश्य है गहन विश्राम प्राप्त करना। गहन विश्राम का उद्देश्य है आपको पूर्ण करना। पूर्णता में ही आपको प्रसन्नता, आनंद की प्राप्ति होती है। प्रेम का उद्देश्य आनंद को अपने भीतर जन्म लेने देना है।

प्रेम का उद्देश्य आनंद प्राप्तिः श्री श्री रविशंकर Reviewed by on . भगवद्गीता में एक कहानी है। जब भगवान कृष्ण को भोजन परोसा जा रहा था, वे खड़े हुये और बोले, ‘‘नही, मुझे जाना है।‘‘ गोपियों ने उन्हें समझाने की कोशिस की। ‘‘पहले अपन भगवद्गीता में एक कहानी है। जब भगवान कृष्ण को भोजन परोसा जा रहा था, वे खड़े हुये और बोले, ‘‘नही, मुझे जाना है।‘‘ गोपियों ने उन्हें समझाने की कोशिस की। ‘‘पहले अपन Rating:
scroll to top