कामयाबी के शिखर पर कुशलता के सोपानों से चढ़ा जाता है। सफलता बौद्धिक प्रतिभा का संग्रह मात्र नहीं, बल्कि बौद्धिक क्षमता के समुचित सुनियोजन की कुशलता का नाम है।
सफलता एक ऐसी तकनीक का नाम है, जो जाने हुए अर्जित ज्ञान को समय की मांग के अनुरूप क्रियाशील व क्रियान्वित कर सके। नई सोच व नए विचार व नित नई कुशलता सफलता के सूत्र हैं। ये सूत्र भौतिक जीवन से लेकर आध्यात्मिक जीवन में भी प्रयुक्त होते हैं। भौतिक जीवन के नूतन आविष्कार और उनकी व्यावहारिक उपयोगिता इसी का परिणाम है। सफल होने के लिए समय व परिस्थिति के अनुरूप स्थिति को ढालने की आवश्यकता होती है। पूर्वाग्रही, दुराग्रही व हठाग्रही व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकते। ऐसा इसलिए, क्योंकि ऐसे व्यक्ति अपनी आदतों, मान्यताओं व आग्रहों व दुराग्रहों की सीमा में इस कदर कैद होते हैं कि वह इससे परे कुछ सोच ही नहीं सकते। ऐसी मानसिकता बदली हुई परिस्थितियों की आहट को सुनने-समझने में पूर्णत: अक्षम-असमर्थ होती है।
किसी क्षेत्र में सफलता के लिए उस क्षेत्र के सारे आयामों से संबंधित सूचनाओं के संग्रह की जरूरत होती है। इसके अलावा किसी वांछित विषय के स्वरूप को मनोयोगपूर्वक सही ढंग से समझना और उसे क्त्रियान्वित करने की तकनीक खोजना महत्वपूर्ण है। सफल होने के लिए उपलब्ध व अर्जित ज्ञान को नवीनतम तथ्यों व तकनीकों से समन्वित करके प्रस्तुत करना सफलता का मार्ग है।
कुशल कलाकार अपने कलात्मक कौशल से अपनी कला को सफलता के शिखर तक पहुंचा देता है। हमारे पास जो है या हम जिसे प्राप्त करने जा रहे हैं उसे वर्तमान में कैसे उपयोगी व व्यावहारिक बनाया जा सकता है? इस बात की खोज ही सफलता का आधार है। इसलिए सफल होने के लिए ज्ञानार्जन के अलावा इस बारे में तकनीकी ज्ञान प्राप्त करते हुए इस ज्ञान के प्रयोग की कुशलता का अभ्यास परम आवश्यक है। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सफलता के लिए धैर्य की भी बहुत आवश्यकता है। जैसे पौधा एक दिन में वृक्ष नहीं बन जाता, ठीक उसी प्रकार सफलता का भी कोई ‘शार्टकट’ नहीं होता।