अनिल कुमार सिंह धर्मपथ के लिए
राहुल गांधी ने भारत की जनता को सोचने पर मजबूर कर दिया है,भाजपा के “पप्पू” अभियान और भाजपा के समर्थकों और ट्रोलर द्वारा इस अभियान को हवा देने से भारतीय जनता का मानस बन गया था की राहुल “पप्पू” ही हैं,भारतीय जनता भाजपा या कहें प्रधानमन्त्री मोदी की टीम के द्वारा फैलाये झांसे में आ गयी और राहुल गांधी को राजनीति का “पप्पू” निरूपित कर दिया,भाजपा के समर्थक अपने नेताओं के अभियान में सहयोग करते रहे वहीँ नेता और उनके आर्थिक सहयोगी गंभीर भ्रष्टाचार करने में जुटे रहे,उन्हें यह नहीं समझ आया जिस रोज ये मामले सामने आएंगे तब क्या होगा ? आज राहुल गांधी ने कुछ नहीं किया अपितु भाजपा के कुछ नेता यहाँ यह कहना सटीक होगा एक नेता प्रधानमन्त्री मोदी की गंभीर गलतियों से राहुल गांधी पर लगाया गए टैग “पप्पू” को कहने कोई भारतीय तैयार नहीं हो रहा है. प्रधानमन्त्री मोदी की आपराधिक गलतियों से आज “पप्पू” पास हो गया.
भारत की सीमा के भीतर लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में चीनी घुसपैठ ,2014 से अब तक कभी भी नोटबंदी से लेकर जीएसटी के खराब क्रियान्वयन या यहां तक कि अभूतपूर्व महंगाई और बेरोजगारी जैसे मसलों ने भी भाजपा को परेशान नहीं किया है वहीँ चीनी घुसपैठ और अडानी विवाद भाजपा की सबसे बड़ी ताकतों- राष्ट्रवाद और भ्रष्टाचार मुक्त दामन- पर चोट करता है. एक महीने के दौरान राहुल गांधी को जिस तरह से परेशान किया जा रहा है, वह भाजपा के एक दूसरे ही पहलू को दिखाता है. यह बौखलाई हुई सी दिख रही है.अडानी विवाद और कथित तौर पर उन्हें फायदा पहुंचाने को लेकर लोकसभा में दिए गए उनके भाषण के कई अंशों को रिकॉर्ड से बाहर कर दिया गया. इसके बाद भाजपा ने इंग्लैंड में राहुल गांधी द्वारा की गई टिप्पणियों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने और फिर उन टिप्पणियों के लिए उनसे माफी की मांग करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी.
यह प्रथम अवसर है इससे पहले शायद ही कभी संसद में विपक्ष का कोई सदस्य सत्ताधारी दल के इस तरह के हमले का शिकार हुआ है. गांधी को माफी मांगे बिना लोकसभा में बोलने भी नहीं दिया गया. यह सियासी रस्साकशी इस सीमा तक पहुंच गई कि सत्ताधारी पक्ष ने संसदीय कार्यवाही का सामान्य तरीके से चलने नहीं दिया और लगभग हर दिन संसद को बाधित किया गया जिसके कारण इसे बार-बार स्थगित करना पड़ा और आखिरकार बजट को बिना चर्चा के पारित कर दिया गया.
सीजेएम कोर्ट की सजा आई जिसके बाद आनन-फानन में राहुल गांधी की संसद सदस्यता समाप्त कर दी गई. यह पहली मर्तबा है, जब राहुल गांधी के हमलों के जवाब में उनका ‘पप्पू’ कहकर मजाक नहीं बनाया गया. राहुल गांधी पर एकाग्र हमला और आखिरकार उनकी अयोग्यता, जबकि 16 विपक्षी पार्टियां अडानी समूह और मोदी सरकार की कथित मिलीभगत पर एक संयुक्त संसंदीय जांच (जेपीसी) की मांग कर रही थीं, यह दर्शाता है कि भगवा खेमे द्वारा राहुल गांधी को खारिज करने का अभियान भी उन्हें मोदी को गंभीर चुनौती देने वाले के तौर पर उभरने से रोकने की कोशिश का हिस्सा था.
इसके बाद सीजेएम कोर्ट की सजा आई जिसके बाद आनन-फानन में राहुल गांधी की संसद सदस्यता समाप्त कर दी गई. यह पहली मर्तबा है, जब राहुल गांधी के हमलों के जवाब में उनका ‘पप्पू’ कहकर मजाक नहीं बनाया गया. राहुल गांधी पर एकाग्र हमला और आखिरकार उनकी अयोग्यता, जबकि 16 विपक्षी पार्टियां अडानी समूह और मोदी सरकार की कथित मिलीभगत पर एक संयुक्त संसंदीय जांच (जेपीसी) की मांग कर रही थीं, यह दर्शाता है कि भगवा खेमे द्वारा राहुल गांधी को खारिज करने का अभियान भी उन्हें मोदी को गंभीर चुनौती देने वाले के तौर पर उभरने से रोकने की कोशिश का हिस्सा था.
राहुल गांधी को चुप कराने की कोशिश करके भाजपा ने भारत के लोकतंत्र के खतरे में होने और मोदी सरकार की अधिनायकवादी प्रवृत्तियों के चलते सार्वजनिक संस्थानों के कमजोर होने के राहुल गांधी के बयान को वैधता देने का काम किया है. जिस तरह से भाजपा राहुल गांधी के खिलाफ गैरआनुपतिक और असमय आक्रमण कर रही है, उसे देखते हुए आखिरकार यह कहा जा सकता है कि भारत जोड़ो यात्रा सफल रही.
राहुल गांधी को दी गई सजा और संसद सदस्यता से उनकी अयोग्यता को उनकी और उनकी पार्टी, दोनों के लिए ही एक छिपा हुआ वरदान कहा जा सकता है. आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में एक भावनात्मक और वास्तविक मसले पर अपना चुनाव अभियान चला सकती है और एक गंभीर विकल्प के तौर पर उभर सकती है.
राहुल गांधी को दी गई गैर आनुपातिक सजा ने पार्टी को एक हथियार थमाने का काम किया है. कांग्रेस को अब मतदाताओं को उत्साहित और आकर्षित करने और एक मजबूत विपक्ष के तौर पर उभरने के लिए बस एक वैकल्पिक राजनीतिक और आर्थिक नजरिया पेश करने की जरूरत है.
गांधी की अयोग्यता पर कांग्रेस को ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, वायएसआर रेड्डी समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं का बिना शर्त समर्थन मिला है. ये सारे दल केंद्र के राजनीतिक दबाव का सामना कर रहे हैं. विभिन्न मसलों पर विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने के लिए यह कांग्रेस के पास सुनहरा अवसर है.
राहुल गांधी के ट्वीट्स और बयानों को देखें तो उन्होंने लड़ने का जज्बा दिखाया है. उनकी पार्टी के नेताओं ने भी दबाव के सामने न झुककर ऐसे ही साहस का इजहार किया है. राहुल गांधी खुद को एक ऐसे नेता के तौर पर पेश कर रहे हैं, जिन्हें सत्ता से कोई खास प्यार नहीं है- एक साधु जैसे कोई अनासक्त नेता, जो भारत की विविधता और इसके लोगों की रक्षा करने की लड़ाई लड़ एकता है.
पिछले कुछ महीनों में उन्होंने अपना नैतिक संकल्प दिखाया है. यह सही समय है जब वे अपने व्यक्तित्व के इस पक्ष को लोगों तक लेकर जाएं, इस संभावना को नजरअंदाज करते हुए कि उन्हें अगला लोकसभा चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया जा सकता है.