नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने कहा है कि ‘पाञ्चजन्य’ (पत्रिका) धर्मयुद्ध का शंखनाद कर रहा है.
वैद्य का यह बयान ऐसे समय में आया है जब इस पत्रिका में सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस की आलोचना करने से जुड़े एक लेख से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार प्रमुख ने दूरी बना ली थी.
दिल्ली के मयूर विहार में आरएसएस से जुड़ी ‘पाञ्चजन्य’ एवं ‘ऑर्गनाइजर’ के नए कार्यालय का उद्घाटन करते हुए मनमोहन वैद्य ने कहा है कि भारत का विचार सर्वसमावेशक है और इसी को आगे बढ़ाने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में वैचारिक युद्ध तो चल ही रहा है, साथ ही राष्ट्रवादी शक्तियां मजबूत न होने पाएं इसके लिए राष्ट्रविरोधी तत्व हर स्तर पर प्रयासरत हैं.
कार्यक्रम में भाजपा के पूर्व महासचिव राम माधव सहित संघ और भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख पदाधिकारी भी मौजूद थे.
उन्होंने बीते सोमवार (छह सितंबर) को आयोजित समारोह में कहा, ‘ऐसे में भारत में राष्ट्रविरोधी विचारों को प्रभावी नहीं होने देना है. एक तरह से यह धर्मयुद्ध है और पाञ्चजन्य धर्मयुद्ध का शंखनाद ही है.’
वैद्य ने कहा कि जो लोग धर्म के साथ नहीं हैं, उन पर बाण चलाने पड़ेंगे. उन्होंने कहा कि हमने सारे समाज को अपना माना है, इसलिए समाज को साथ लेकर चलना पड़ेगा जो भारत का मूल विचार है.
संघ के सह सरकार्यवाह ने कहा, ‘सभी भारत माता की संतान हैं और सभी के सहयोग से ही हम धर्मयुद्ध जीतेंगे.’
गौरतलब है कि ‘पाञ्चजन्य’ एवं ‘ऑर्गनाइजर’ भारत प्रकाशन द्वारा प्रकाशित होते हैं. इन दोनों साप्ताहिक पत्रिकाओं में संघ से संबंधित वैचारिक विचार प्रदर्शित होते हैं.
पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने कहा कि पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर राष्ट्रीय महत्व से जुड़े विषयों को उठाते हैं और इसलिए जाने जाते हैं.
पाञ्चजन्य ने इस महीने के अपने एक अंक में प्रकाशित लेख में सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस द्वारा तैयार किए गए आयकर और जीएसटी पोर्टल में खामियों को लेकर उसकी आलोचना करते हुए आशंका व्यक्त की थी कि क्या इंफोसिस के माध्यम से कोई राष्ट्रविरोधी ताकत भारत के आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रही है.
‘पाञ्चजन्य’ के 5 सितंबर के संस्करण में इंफोसिस पर ‘साख और आघात’ शीर्षक से चार पृष्ठों की कवर स्टोरी प्रकाशित की गई थी, जिसमें इसके संस्थापक नारायण मूर्ति की तस्वीर कवर पेज पर थी.
लेख में बेंगलुरु स्थित कंपनी पर निशाना साधा गया था और इसे ‘ऊंची दुकान, फीका पकवान’ करार दिया गया था. इसमें यह भी आरोप लगाया गया था कि इंफोसिस का ‘राष्ट्र-विरोधी’ ताकतों से संबंध है और इसके परिणामस्वरूप सरकार के आयकर पोर्टल में गड़बड़ की गई है.
पत्रिका के लेख में कहा गया था कि कंपनी टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथ काम कर रही है.
इसे लेकर आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने स्थिति स्पष्ट करते हुए एक ट्वीट में कहा था कि पाञ्चजन्य में कंपनी के बारे में छपे विचारों के लिए संगठन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.
उन्होंने कहा था कि भारतीय कंपनी के रूप में इंफोसिस ने भारत की तरक्की में अहम योगदान दिया है.
इसके साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि पाञ्चजन्य संघ का मुखपत्र नहीं है. हालांकि पाञ्चजन्य हमेशा से आरएसएस का हितैषी रहा है.
इसके संपादक को आरएसएस के राष्ट्रीय अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बैठक में बुलाया जाता है. यह सभा संघ का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला संगठन है और इसकी वार्षिक बैठकों में केवल इसके प्रमुख संबद्ध निकायों के प्रतिनिधि ही शामिल होते हैं.
पाञ्चजन्य के पहले संपादक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे और बाद के कई संपादक आरएसएस के सदस्य रहे हैं. पाञ्चजन्य का दावा है कि जनसंघ के संस्थापक और आजीवन आरएसएस के प्रचारक दीन दयाल उपाध्याय ने पत्रिका को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
वाजपेयी से लेकर केआर मलकानी, लालकृष्ण आडवाणी, भानु प्रताप शुक्ला, विनय नंद मिश्रा और देवेंद्र स्वरूप तक- भाजपा और आरएसएस के कई शीर्ष लोग पाञ्चजन्य या ऑर्गनाइजर के संपादक रहे हैं.
बहरहाल, जहां इस रिपोर्ट की विपक्षी दलों ने आलोचना की और लेख को ‘राष्ट्र-विरोधी’ बताते हुए पत्रिका की आलोचना की और उद्योग जगत की चुनिंदा आवाजों ने भी इंफोसिस का समर्थन किया, लेकिन भाजपा, केंद्र सरकार और अग्रणी उद्यमी संगठनों ने इस पूरे मामले पर चुप्पी साध रखी है.
बता दें कि आयकर विभाग के नए पोर्टल में शुरुआत से ही दिक्कतें आ रही हैं. आयकर रिटर्न दाखिल करने के लिए इस नए पोर्टल की शुरुआत सात जून को हुई थी.
इसके बाद वित्त मंत्रालय ने पोर्टल बनाने वाली इंफोसिस के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) सलिल पारेख को तलब किया था. तब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सलिल पारेख को निर्देश दिया था कि आयकर के इस पोर्टल में आ रही दिक्क्तों को 15 सितंबर तक दूर कर दिया जाए.
इंफोसिस को आयकर दाखिल करने वाली प्रणाली विकसित करने का अनुबंध 2019 में मिला था. जून, 2021 तक सरकार ने इंफोसिस को पोर्टल के विकास के लिए 164.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया है.