धर्मपथ के लिए अनिल कुमार सिंह भोपाल से
भोपाल लोकसभा चुनाव इस समय भारत में सबसे अधिक चर्चित है ,राजनैतिक निगाहें इस ओर लगी हुयी हैं वोट 12 मई को डाले जाएंगे दोनों प्रमुख दल कांग्रेस एवं भाजपा अपने प्रयासों के अंतिम चरण में हैं.भाजपा ने जहाँ हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को मुद्दा बना साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को चुनाव मैदान में उतारा है वहीं कांग्रेस ने विकास एवं सामाजिक समरसता के प्रतीक के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को चुनावी समर में उतारा है।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को टिकट की घोषणा के पूर्व ही भाजपा में शामिल किया गया एवं पीड़ित हिंदुत्व का चेहरा साध्वी को बना चुनाव में प्रस्तुत किया गया जबकि भोपाल के पूर्व सांसद आलोक संजर साढ़े तीन लाख से अधिक वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे भाजपा के इतने मजबूत गढ़ को पीड़ित हिंदुत्व के चेहरे को सामने लाने के लिए साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के हवाले कर दिया गया जो अभी आतंकवाद के मुकदमें का सामना कर रही हैं.प्रज्ञा ठाकुर के समर्थन में आरएसएस एवं अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ता हैं जिनका स्थानीय लोगों से कोई सीधा जुड़ाव नहीं है ,भाजपा के स्थानीय नेता भी इस चेहरे से खुश नहीं हैं वे बेमन से कार्य करते नजर आ जाते हैं,प्रज्ञा के आस-पास कुछ साधू वेषधारी युवा एवं कुछ भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता नजर आते हैं बाकी संख्या आरएसएस के स्वयंसेवकों की है जो प्रज्ञा के चुनाव प्रबंधन की देखरेख कर रहे हैं.
प्रज्ञा को राजनैतिक बयान देने की आदत नहीं है अतः वे अपने शुरूआती बयानों ने उलझ गयीं और चुनाव आयोग का प्रतिबन्ध भी उन पर लगा.प्रज्ञा का चेहरा एक मुद्दे के रूप में जनता के सामने लाया गया ,उमा भारती का नाम भाजपा के पास था किन्तु उमा चुनाव लड़ने के एवज में पार्टी को अपने क़दमों में झुकाना चाहती थीं पार्टी झुकी भी लेकिन एक स्तर के बाद उसने समझौता नहीं किया ,नरेंद्र सिंह तोमर का नाम सामने आया लेकिन शिवराज ने अपनी पत्नी के कहने पर वह नाम कटवा दिया ,शिवराज के नाम पर अड़ंगा उमा भारती ने डाला और अंततः प्रज्ञा ठाकुर का नाम सामने आया.
प्रज्ञा ने भोपाल के विकास की बात चुनाव के अंतिम चरण में की वह भी अंश मात्र जो उन्होंने अपनी प्रेस वार्ता में कही,वे राष्ट्रवाद ,देश बचाओ का नारा दे वोट मांग रहीं हैं लेकिन विकास की बात से अछूती हैं।
बात करें दिग्विजय सिंह की तो वे कमलनाथ के राजनैतिक चक्रव्यूह में फंस भोपाल लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं ,दिग्विजय राजगढ़ या इंदौर से चुनाव लड़ना चाहते थे और इस हेतु उन्होंने जोर भी लगाया लेकिन कमलनाथ ने अपने राजनैतिक बल का प्रयोग करते हुए दिग्विजय को राजनैतिक पटखनी दी,खैर दिग्विजय सिंह ने इस चुनौती को स्वीकार किया एवं बेहतर चुनाव प्रबंधन के कौशल से चुनाव की शुरुआत की ,दिग्विजय सिंह को भाजपा उम्मीदद्वार घोषित न होने का फायदा मिला और उन्होंने जनता में अपनी खोयी पकड़ बनायी,प्रज्ञा के मैदान में आने के बाद चुनाव का मुंह संघ ने हिदुत्व की तरफ मोड़ दिया अनुभवी दिग्विजय ने तुरंत अपनी रणनीति में विस्तार किया एवं संत-महात्माओं को अपने पाले में कर प्रचार शुरू करवाया।दिग्विजय सिंह की छवि भाजपा ने हिंदू विरोधी ,राष्ट्रविरोधी और समाज विरोधी की बनायी,उनके पूर्व मुख्यमंत्री काल की असफलताओं को सामने रख उन्हें मि. बंटाधार की उपाधि से नवाज दिग्विजय की लोकप्रियता का ग्राफ कमतर करने का प्रयास किया लेकिन दिग्विजय इन सब हमलों को सहते हुए अपने चुनाव प्रचार में लगे रहे धीरे-धीरे उन्हें समाज के अंगों का समर्थन उनके प्रचार में दिखने लगा,विपरीत परिस्थितिओं में चुनाव लड़ रहे दिग्विजय की यदि जीत होती है तो वह किसी दैवीय आशीर्वाद या चमत्कार से कम नहीं होगी।
दिग्विजय ने भोपाल लोकसभा के लिए अपना चुनावी दृष्टिपत्र प्रस्तुत किया जो उनके प्रशासनिक अनुभव की योग्यता बयान करता है ,व्यापारी वर्ग ,बिल्डर,छोटे कामगार,मजदूर वर्ग का समर्थन इन्हें मिल रहा है ,राज्य में कांग्रेस की सरकार होने का निसंदेह फायदा दिग्विजय को मिलेगा सबसे कठिन कर्मचारी कर्मचारी वर्ग का समर्थन लेना दिग्विजय के लिए है लेकिन चुनाव आते-आते अधिकांशतःकर्मचारी वर्ग इनकी नीतियां देख समर्थन में आया है.दिग्विजय सिंह के समर्थन में कई स्थानीय भाजपा नेता भी हैं जो परदे के पीछे से समर्थन कर रहे हैं लेकिन फिर भी पलड़ा प्रज्ञा का हिंदुत्व के मुद्दे पर भारी नजर आ रहा है.
ऐसा नहीं है की दिग्विजय को अपने पार्टी से भीतरघात नहीं मिल रही यह चुनौती उनके सामने है ,कमलनाथ समर्थक अपेक्षित सहयोग नहीं कर रहे है वहीँ दिग्विजय के साथ मंच साझा करने वाले कई बड़े चेहरे अपने सहयोगियों से विरोध में प्रचार करवा रहे हैं.”हिम्मते मर्दा,मददे खुदा” की आशा ले दिग्विजय सिंह निर्बाध अपने चुमाव प्रचार में जुटे हुए हैं .
अब देखना है 12 मई को दोनों प्रत्याशी कितने मतदाताओं को अपने पक्ष में कर सकते हैं जनता चुपचाप है उसके मन की जांनना कठिन है ,चौक-चौराहे ,मयखाने और सोशल मीडिया चुनावी जद्दोजहद से लबरेज है ,23 मई को इसका रिजल्ट सामने आएगा देखना है भोपाल की जाता दिग्विजय के रूप में समरसता एवं विकास को चुनती है या कट्टर हिंदुत्व के प्रतीक प्रज्ञा सिंह ठाकुर को।