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 मौत का पता पहले चल जाए तो क्या होगाः ओशो | dharmpath.com

Friday , 22 November 2024

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मौत का पता पहले चल जाए तो क्या होगाः ओशो

oshoजीवन बीतता है बूंद-बूंद। रिक्त होता है रोज। हाथ से जैसे रेत सरकती जाए वैसे ही पैर के नीचे की भूमि सरकती जाती है। दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि देखने के लिए बड़ी सजगता चाहिए। और इतने धीमे-धीमे बीतता है जीवन, कि पता नहीं चलता कि हर घड़ी मौत निकट आ रही है।

जब भी कोई मरता है तो मन सोचता है, मौत सदा दूसरे की होती है। मैं तो कभी मर सकता नहीं; जबकि हर मौत तुम्हारी मौत की खबर लाती है। जो पड़ोसी को हुआ है, वही हाल तुम्हारा भी होने वाला है।

अखिरी क्षण तक भी होश नहीं आता। गफलत में, बेहोशी में; अपने ही हाथ से आदमी अपने को समाप्त कर लेता है। कितना ही धन कमाओ, कितनी ही पद-प्रतिष्ठा मिले, मौत सभी कुछ साफ कर देती है। मौत सब मिटा देती है, तुम्हारे बनाए सब घर ताश के पत्तों के घर सिद्ध होते हैं। और तुम्हारे द्वार तैराई गई सभी नावें कागज सिद्ध होती हैं। सब डूब जाता है।

जिसे यह होश आना शुरू हो गया कि मौत है, उसी के जीवन में धर्म की किरण उतरती है। मौत का स्मरण धर्म की प्राथमिक भूमिका है। अगर मृत्यु न होती तो संसार में धर्म भी न होता। मृत्यु है, इसलिए धर्म की संभावना है। और जब तक तुम मृत्यु को झुठलाओगे तब तक तुम्हारे जीवन में धर्म की किरण नहीं उतरेगी।

मृत्यु को ठीक से समझो। क्योंकि उसके आधार पर ही जीवन मे क्रांति आएगी। तुम्हें अगर पता चल जाए कि आज सांझ ही मर जाना है, तो क्या तुम सोचते हो, तुम्हारे दिन का व्यवहार वही रहेगा जो इस पता न चलने पर रहता? क्या तुम उसी भांति दुकान जाओगे? उसी भांति ग्राहकों का शोषण करोगे? क्या उसी भांति व्यवहार करोगे, जैसा कल किया था? क्या पैसे पर तुम्हारी पकड़ वैसे ही होगी, जैसे एक क्षण पहले तक थी? क्या मन में वासना उठेगी, काम जगेगा? सुंदर स्त्रियां आकर्षित करेंगी? राह से गुजरती कार मोहित करेगी? किसी का भवन देखकर ईर्ष्या होगी? नहीं, सब बदल जाएगा।

अगर मौत का पता चल जाए कि आज ही सांझ हो जाने वाली है, तुम्हारे जीवन का सारा अर्थ, तुम्हारे जीवन का सारा प्रयोजन, तुम्हारे जीवन का सारा ढंग और शैली बदल जाएगी। मौत का जरा- सा भी स्मरण तुम्हें वही न रहने देगा जो तुम हो। और तुम जो हो, बिलकुल गलत हो।

क्योंकि सिवाय दुःख के और तुम्हारे होने से कुछ भी फल नहीं आता। फल लगते हैं निश्चित; केवल दुःख के लगते हैं। फल लगते हैं निश्चित। तुम्हारी आशाओं के अनुकूल नहीं, न तुम्हारे स्वप्नों के अनुसार। फल लगते हैं तुम्हारी आशाओं के विपरीत। तुम्हारे सपनों से बिलकुल उलटे।

मौत का पता पहले चल जाए तो क्या होगाः ओशो Reviewed by on . जीवन बीतता है बूंद-बूंद। रिक्त होता है रोज। हाथ से जैसे रेत सरकती जाए वैसे ही पैर के नीचे की भूमि सरकती जाती है। दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि देखने के लिए बड़ी सजगत जीवन बीतता है बूंद-बूंद। रिक्त होता है रोज। हाथ से जैसे रेत सरकती जाए वैसे ही पैर के नीचे की भूमि सरकती जाती है। दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि देखने के लिए बड़ी सजगत Rating:
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