नई दिल्ली – नई सरकार के गठन के बाद सीबीआई जज बीएच लोया की मौत का मामला एक बार फिर महाराष्ट्र में गरमा सकता है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जब यह मामला सामने आया था उस समय शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने मामले की जांच की वकालत की थी।
उन्होंने कहा था कि जज लोया मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। आज तक की वेबसाइट पर यह खबर विस्तार से प्रकाशित की गयी थी। इसमें उद्धव ने कहा था कि “सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। और जजों के खिलाफ कोई एकतरफा कार्रवाई भी नहीं करनी चाहिए।”
ठाकरे के मुताबिक “शोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले के सीबीआई जज लोया की मौत के मामले में जांच होनी चाहिए।” ठाकरे ने कहा था कि “अगर कुछ गलत नहीं है तो किसी को भी जांच पड़ताल से भला क्या दिक्कत हो सकती है।”
आपको बता दें कि आज से पांच साल पहले आज आने वाली रात के ही दिन जज लोया की नागपुर के सरकारी गेस्ट हाउस रवि भवन में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गयी थी। यह मामला बहुत दिनों तक दबा रहा। बाद में खोजी पत्रकार निरंजन टकले ने लोया के परिजनों और खासकर उनकी बहन और पिता से बात के आधार पर ‘दि कारवां’ वेबसाइट पर एक खबर प्रकाशित की। जिसमें उन लोगों ने लोया की मौत को संदिग्ध करार देने के साथ ही उसे हत्या बताया था। और पूरे मामले की जांच की मांग की थी। बाद में यह बड़ा मसला बना और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
कोर्ट ने लोया मामले से संबंधित सभी केसों और उससे जुड़े कागजों और दस्तावेजों को अपने पास बुला लिया। उसी दौरान सुप्रीम कोर्ट को चार वरिष्ठ जजों और तत्कालीन कोलेजियम के सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के रवैये के खिलाफ अपना प्रतिरोध जाहिर करते हुए 12 जनवरी, 2018 को प्रेस कांफ्रेंस कर दी। जिसमें इन जजों ने कहा कि देश का लोकतंत्र खतरे में है।
उन्होंने कहा कि मामले फिक्स्ड बेंचों को दिए जा रहे हैं। उनमें से एक जज ने इशारे-इशारे में जज लोया के मामले के साथ भी न्याय नहीं हो पाने का संकेत दिया था। प्रेस कांफ्रेंस करने वाले जजों में जस्टिस (रिटायर्ड) जे चेलमेश्वर, जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस रंजन गोगोई शामिल थे। इन सभी जजों ने तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के काम करने के तरीकों पर सवाल उठाया था।
हालांकि लोया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आखिरी तौर पर किसी तरह की जांच का आदेश देने से इंकार कर दिया था। बावजूद इसके इस मामले से जुड़े लोगों को लगता है कि लोया और उनके परिजनों के साथ न्याय नहीं हो पाया। लिहाजा वह आज भी अलग-अलग तरीके से इस मामले को उठाते रहते हैं।
इसी मामले से सीधे जुड़े और एक तरह से पीड़ित एडवोकेट सतीश यूके एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने लोया मामले के गरम होने के दौरान एक सरकारी पत्र पेश किया था। जिसमें उनका कहना था कि लोया नागपुर सरकारी दौरे पर गए थे। नागपुर स्थित रविभवन में स्यूट आवंटित करने के सिलसिले में लिखे गए इस पत्र में बकायदा यह बताया गया है कि जज विनय जोशी (जो मौजूदा समय में बांबे हाईकोर्ट में जज हैं) और जज बीएच लोया सरकारी काम से 30 नवंबर से 1 दिसंबर, 2014 तक के लिए नागपुर जा रहे हैं और उनके ठहरने के लिए वहां कमरा आवंटित करने की कृपा करें।
मराठी भाषा में लिखे गए इस पत्र की एक-एक प्रतिलिपि रविभवन के व्यवस्थापक तथा उप जिलाधिकारी को भेजी गयी है। एडवोकेट सतीश यूके के मुताबिक इस पत्र से यह बात साबित हो जाती है कि जज लोया सरकारी दौरे पर थे। लिहाजा अब जबकि उनकी मौत हो गयी है तब सरकारी नियमों के मुताबिक उनके परिजनों को उसका मुआवजा मिलना चाहिए। जनचौक से बातचीत में उन्होंने कहा कि इसके तहत परिवार के कम से कम एक सदस्य को नौकरी और रकम के तौर पर कुछ राशि दी जानी चाहिए। और यह जिम्मेदारी सरकार की बनती है।
उन्होंने कहा कि पिछली सरकार तो पूरे मामले को लेकर पक्षपाती थी लिहाजा उससे इस तरह की कोई आशा भी नहीं की जा सकती थी। लेकिन अब जबकि नई सरकार आ गयी है और उसके मौजूदा मुख्यमंत्री जो उस समय शिवसेना के मुखिया थे, ने जांच का समर्थन किया था। तब यह उनकी जिम्मेदारी बन जाती है कि न केवल वे जज लोया के साथ न्याय करें बल्कि उनके परिजनों को भी उचित मुआवजा देने की पहल भी करें।