भगवान श्री कृष्ण और राधा दैवी प्रेम के प्रतीक हैं। नारद मुनि के शाप के कारण इन्हें पृथ्वी लोक में अवतार लेकर वियोग सहना पड़ा। लेकिन इनका यह वियोग लौकिक दुनिया की नजरों का धोखा था। असल में राधा और कृष्ण कभी अलग ही नहीं हुए।
राधा हमेशा कृष्ण के हृदय में धड़कन की तरह समाई रहीं और नित इनका मिलन होता रहा। इसका प्रतीक आज भी इस धरती पर मौजूद है जहां हर रात इनकी सेज सजती है और राधा कृष्ण का मिलन होता है।
यह स्थान वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर यमुना तट पर बसा निधि वन है। माना जाता है कि यह वही वन है जहां भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला का आयोजन किया था। इस वन में मौजूद वृक्षों को देखकर ऐसा लगता है जैसे मनुष्य नृत्य की मुद्रा में हो।
मान्यता है कि यह वृक्ष गोपियां हैं जो रात के समय मनुष्य रूप लेकर श्री कृष्ण के साथ रास का आनंद लेती हैं। इस वन की विशेषता है कि शाम ढ़लते ही सभी पशु-पक्षी वन से निकलकर भाग जाते हैं। इस वन के बीचों-बीच एक मंदिर बना हुआ है। मंदिर में हर दिन भगवान की सेज सजाई जाती है और श्रृंगार साम्रगी रख दी जाती है।
मान्यता है कि देवी राधा श्रृंगार सामग्री से अपना श्रृंगार करती हैं और भगवान श्री कृष्ण देवी राधा के साथ सेज पर विश्राम करते हैं। अगले दिन भक्तगण इस श्रृंगार सामग्री और सिंदूर को प्रसाद स्वरूप पाकर अपने आपको धन्य मानते हैं।