मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे स्थित महाकालेश्वर मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। देश में शिव की आराधना के सर्पवप्रमुख स्थानों में से भी एक है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्र्र्वर महादेव की अत्यंत पुण्यदायी महत्ता है। कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है। उज्जैन की प्रसिद्धि सदियों से एक धार्मिक नगर के रूप में रही है। लंबे समय तक यहां न्यायप्रिय महाराजा विक्त्रमादित्य का शासन रहा। महाकवि कालिदास, बाणभट्ट आदि की कर्मस्थली भी यही नगर रहा। कृष्ण की शिक्षा यहीं हुई थी। महाकालेश्वर मंदिर एक विशाल परिसर में स्थित है, जहां कई देवी-देवताओं के छोटे-बड़े मंदिर हैं। मंदिर में प्रवेश करने के लिए मुख्य द्वार से गर्भगृह तक की दूरी तय करनी पड़ती है।
वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है वह तीन खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य के खंड में ओंकारेश्वर और ऊपरी खंड में नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है। गर्भगृह में महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है।