भोपाल– मध्य प्रदेश में महालेखाकार (कैग) की रिपोर्ट में राज्य में महिलाओं और बच्चों को दिए जाने वाले पोषण आहार संबंधी योजना में बड़े पैमाने पर अनियमतिताएं सामने आई हैं.
कैग रिपोर्ट में सामने आया है कि टेक होम राशन (टीएचआर) की छह उत्पादन इकाइयों से करोड़ों रुपये के पोषण आहार में गड़बड़ियां हुई हैं. मसलन, जिन ट्रकों से इस राशन का परिवहन हुआ बताया जा रहा है, उनके नंबरों की जांच करने पर सामने आया कि वे वास्तव में मोटरसाइकिल, कार और ऑटो के तौर पर आरटीओ में पंजीकृत थे.
गौरतलब है कि 1975 में भारत सरकार एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) लेकर आई थी. जिसके तहत पूरक पोषण कार्यक्रम (एसएनपी) भी चलाया जाना था, टेक होम राशन (टीएचआर) भी इसका एक हिस्सा था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि टीएचआर का मूल उद्देश्य छह महीने से तीन साल तक के बच्चों, गर्भवती व धात्री (स्तनपान कराने वाली) मांओं और 11 से 14 वर्ष की आयु वाली किसी कारणवश स्कूल छोड़ चुकी किशोरी छात्राओं की पोषण जरूरतों का पूरा करना था.
लेकिन, इसी टेक होम राशन के ऑडिट में कैग ने गंभीर अनियमितताएं पाईं जो इसके उद्देश्य की पूर्ति पर गंभीर सवाल खड़ा करती हैं.
द वायर के पास उपलब्ध 33 पृष्ठीय रिपोर्ट के निष्कर्षों को 10 बिंदुओं में समझाते हुए कैग ने बताया है कि भारत सरकार और मध्य प्रदेश सरकार ने स्कूली शिक्षा से बाहर की किशोरी छात्राओं में टीएचआर वितरण के लिए उनकी पहचान हेतु सर्वे 2018 तक पूरा करने के निर्देश दिए थे, लेकिन विभाग फरवरी 2021 तक सर्वे पूरा नहीं कर सका. वहीं, विभिन्न विभागों के सर्वेक्षणों में किशोरियों की संख्या में भारी अंतर पाया गया और उसके आधार पर टेक होम राशन भी बंटा हुआ दिखाया गया.
उदाहरण के लिए, ऑडिट में बताया गया है कि 8 जिलों के 49 आंगनबाड़ी केंद्रों में स्कूली शिक्षा से बाहर की वास्तव में केवल 3 छात्राएं पंजीकृत थीं, लेकिन महिला बाल विकास (डब्ल्यूसीडी) विभाग ने एमआईएस पोर्टल में 63,748 छात्राओं का पंजीकरण दिखा दिया और 2018-21 के दौरान 29,104 को टेक होम राशन के वितरण का भी दावा कर दिया.
इसे फर्जी वितरण करार देते हुए कैग ने 110.83 करोड़ रुपये के नुकसान का आकलन किया है.
कैग की रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि टीएचआर उत्पादन संयंत्रों ने उत्पादन को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया, यहां तक कि संयंत्र की क्षमता से भी अधिक उत्पादन होना दिखाया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे पता चलता है कि संयंत्र के अधिकारियों ने काल्पनिक उत्पादन दिखाया. इसकी लागत 58 करोड़ रुपये बताई गई है.
बाड़ी, धार, मंडला, रीवा, सागर और शिवपुरी के छह संयंत्रों के बारे में रिपोर्ट कहती है कि यहां 4.95 करोड़ रुपये का 821.558 मीट्रिक टन टेक होम राशन सप्लाय किया गया, जबकि जिस तारीख पर चालान जारी किया गया था उस दिन स्टॉक ही उपलब्ध नहीं था.
वहीं, छह टीएचआर उत्पादन इकाइयों ने दावा किया कि उन्होंने 6.94 करोड़ रुपये का 1125.64 मीट्रिक टन टीएचआर का परिवहन किया, लेकिन संबंधित राज्यों के वाहनों के डेटाबेस की जांच करने पर खुलासा हुआ कि इस काम में इस्तेमाल हुए ट्रक वास्तव में मोटरसाइकिल, कार, ऑटो के तौर पर पंजीकृत थे और डेटाबेस में टैंकर या ट्रक का अस्तित्व ही नहीं है.
एनडीटीवी की रिपोर्ट बताती है कि पोषण की ढुलाई में वैसी ही गड़बड़ी की गई है, जैसी बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाले की जांच में पाई गई थीं. उस समय सामने आया था कि पशुओं का चारा ट्रकों की बजाय स्कूटर और मोटरसाइकिल पर कागजों में ढोया गया था.
कैग ने कहा है कि आठ जिलों में उसने पाया कि बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) को संयंत्रों से 97,656 मीट्रिक टन टीएचआर मिला. हालांकि, उन्होंने केवल 86,377 मीट्रिक टन का परिवहन आंगनबाड़ियों में किया. बाकी बचा 10 हजार मीट्रिक टन से अधिक टीएचआर, जिसकी कीमत 62.72 करोड़ रुपये थी, को ट्रांसपोर्टर या अन्य द्वारा कहीं भेजा नहीं गया और वह गोदाम में भी उपलब्ध नहीं था.
रिपोर्ट कहती है, ‘यह स्टॉक के गबन की ओर स्पष्ट इशारा करता है.’
इसी तरह सामने आया कि जो स्टॉक सीडीपीओ को मिला ही नहीं, उसका भी 1.30 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया.
इसके अलावा स्टॉक रजिस्टरों का मेंटेन न रखना और टीएचआर के नमूनों को उनकी गुणवत्ता की जांच के लिए लैब टेस्टिंग के लिए न भेजने जैसी अनियमितताएं भी सामने आई हैं.
साथ ही, यह भी सामने आया कि 237 करोड़ रुपये के 38,304 मीट्रिक टन टेक होम राशन में आवश्यक पोषण मात्रा नहीं पाई गई, जो दिखाता है कि लाभार्थियों को निम्न दर्जे का टेक होम राशन बांटा गया.
महालेखाकार और विभागीय अधिकारियों की संयुक्त जांच में सामने आया कि 2,865 टीएचआर के पैकेट शिवपुरी और सागर जिलों में वेयरहाउस में पड़े थे, बावजूद इसके रिकॉर्ड में उनका आवंटन दिखा दिया गया.
अंत में कहा गया है कि जिन आठ जिलों में यह ऑडिट हुआ, वहां सीडीपीओ और डीपीओ (विकास परियोजना अधिकारी) ने आंगनबाड़ी केंद्रों का निरीक्षण तक नहीं किया.
रिपोर्ट के मुताबिक पोषण आहार को लेकर यह हालात तब हैं जब 2017-19 के बीच देश में सबसे अधिक शिशुओं की मृत्यु मध्य प्रदेश में हुई और मातृ मुत्यु के मामले में देश में प्रदेश तीसरे पायदान पर रहा.
एनडीटीवी के मुताबिक, मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इस रिपोर्ट को लेकर कहा है कि कैग की रिपोर्ट अंतिम नहीं है, बल्कि प्रक्रिया का एक हिस्सा है. उन्होंने कहा कि इसका परीक्षण लोक लेखा समिति करती है.
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का प्रभार स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास है. इस तरह यह घोटाला उनकी नाक के नीचे ही हुआ है.
कागजों पर बंट गया 111 करोड़ रुपये का राशन, मुख्यमंत्री इस्तीफा दें: कांग्रेस
कैग की इस रिपोर्ट का हवाला देते हुए मंगलवार को कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार ने करीब 111 करोड़ रुपये का राशन कागजों पर बांट दिया. पार्टी ने मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस्तीफे की मांग की है.
कांग्रेस की ओर से इंदौर में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में पूर्व मंत्री एवं विधायक जीतू पटवारी ने कहा, ‘एजी की मीडिया में सामने आई गोपनीय रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में करीब 111 करोड़ रुपये का राशन कागजों पर बांट दिया गया. इस घोटाले के तहत राशन वितरण में तब भी फर्जीवाड़ा किया गया, जब प्रदेश में कोविड-19 का भीषण प्रकोप था.’
उन्होंने कथित घोटाले पर राज्य सरकार को घेरते हुए आरोप लगाया कि सरकारी राशन के स्टॉक में गड़बड़ी की गई और कुपोषित बच्चों तक पहुंचने वाले पोषाहार की गुणवत्ता भी नहीं जांची गई.
कांग्रेस विधायक ने मांग की कि राशन वितरण की ये कथित गड़बड़ियां सामने आने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपने पद से तुरंत इस्तीफा देना चाहिए.
पटवारी ने दावा किया कि किसी निष्पक्ष एजेंसी द्वारा जांच किए जाने पर कथित राशन घोटाला 250 से 300 करोड़ रुपये का निकल सकता है.
कांग्रेस विधायक ने कहा कि विधानसभा के आगामी शीतकालीन सत्र में पार्टी कथित राशन घोटाले का मुद्दा उठाएगी.