मप्र में कांग्रेस की सत्ता का ढांचा हिल गया है ,तिपाई की एक टांग चरमरा गयी है ,कांग्रेस आशान्वित हो उस टांग को टिकाये हुए है की कहीं वापस जुड़ जाए ,या अंत ऐसा करे की न मेरी सत्ता न तेरी ,महाराज से भाईसाब की प्रोन्नति पाए ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से बगावत की हवा निकाल दे ,सिंधिया न घर के बचें न घाट के. कमलनाथ चुनाव जीतने के बाद आत्मघाती तरीके से सरकार चला रहे हैं ,जहाँ उन्हें सत्ता पाते ही कांग्रेस के अवयवों को लोकतंत्रिक गठन में मजबूत करना था,कार्यकर्ताओं को सत्ता का एहसास दिला उत्साहित करना था उसकी जगह उन्होंने अपने आप को सुरक्षाकर्मियों से घिरे एक कमरे में सीमित कर लिया,वहां यदि किसी पहुँच थी भी तो उसका काम नहीं होता था ,सीटों के कमजोर गणित में उलझे मुख्यमंत्री की नजर निर्दलीय और सपा-बसपा विधायकों पर रही लेकिन अपने अंदाज की वजह से वे कुछ ताकतवर नेताओं को अपने से दूर कर गए।
सिंधिया,अरुण यादव,अजय सिंह जैसे नेताओं को उन्होंने सत्ता के गलियारे से दूर किया , हारे हुए कांग्रेसी उम्मीदवारों को पुनः उनके क्षेत्र में स्थापित करने रूचि नहीं दिखाई इसकी वजह से उन नेताओं से जुड़ा वोट बैंक निराश हुआ और नेताओं को अपनी जमीन असुरक्षित दिखाई देने लगी.
कमलनाथ को सहयोग के नाम अपनी राजनैतिक आकांक्षा पूरी करते दिग्विजय सिंह एक कारण और बने कांग्रेस की आज की गति करने में,दिग्विजय सिंह चूंकि अपने पुराने दिनों को नहीं भूले और सत्ता आते ही कहीं न कहीं अपने आप को उसी स्थान पर देखना भी चाहते हैं इसलिए उनका ध्यान भी कांग्रेसी लोकतान्त्रिक मूल्यों को स्थापित करने की तरफ से हट गया वे भी सत्ता के कार्यों में इसतरह मशगूल हो गए की संगठन और कार्यकर्ताओं को भूल गए.दिग्विजय सिंह कार्यकर्ताओं से संपर्क के स्थान पर प्रशासनिक कार्यों में रूचि लेने लगे एवं हस्तक्षेप करने लगे.
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर आर्थिक आक्रमण कमलनाथ सरकार द्वारा किया गया,उन अधिकारीयों को कमान सत्ता की सौंपी गयी जो सामाजिक एवं आर्थिक रूप से दागी हैं ,यही काम भाजपा ने भी अपने कार्यकाल में किया था.
अब बात करें श्रीमंत से आम भाईसाब बने ज्योतिरादित्य सिंधिया की तो वे अपने आप को मप्र की राजनीति में उच्च कद प्राप्त करने के चक्कर में वह कर बैठे जिसके कारण आज न भाजपा उन्हें निगल पा रही है न उगल पा रही है ,भाजपा का वैचारिक एवं सांगठनिक चरित्र सिंधिया के मिजाज का नहीं है ,न तो सिंधिया को भाजपाई बर्दाश्त लम्बे समय तक कर पाएंगे ,सिंधिया के कदम से राजनैतिक अपरिपक्वता सामने आयी है ,भाजपा के मिजाज से सिंधिया का मिजाज मेल नहीं खाता है,सिंधिया समर्थक विधायकों के लिए और बड़ी मुसीबत खड़ी होने वाली है,क्योंकि सिंधिया के फिर किसी अगले कदम से सिंधिया का तो वजूद नहीं बिगड़ेगा लेकिन विधयकों का कैरियर नष्ट हो जाएगा ,वहीँ भाजपा भी अपने विधायकों के टूटने के खतरे को लेकर सशंकित है इसलिए उसने सभी विधायकों को अज्ञातवास पर भेज दिया है,कमलनाथ इस आने वाले खतरे को जानते थे इसलिए उन्होंने भाजपा के कई विधायकों को अपने पक्ष में करने के लिए डोरे डालना पहले से ही शुरू कर दिए थे,कुछ कमजोर विधायक जिनकी कमजोरियां कांग्रेस के पास हैं उन्हें अपने विश्वास में ले उनके प्रत्येक कार्य इस तरह करवाए गए जैसे अपने विधायकों के करवाए जाते हैं इसे ले उनके हारे हुए प्रत्याशी भी चिंतित हो गए थे अपनी राजनैतिक जमीन को लेकर।
अब कमलनाथ ने दावा किया है की वे बहुमत सिद्ध कर देंगे इस बयान को भाजपा हलके में नहीं ले रही है, उसने अपने विधायक मप्र से बाहर भेज दिए हैं ,कांग्रेस भी कल तक विधायकों को मप्र से बाहर भेजने की तैयारी में है.भाजपा ने यह कवायद समय से पूर्व ही शुरू कर दी है लेकिन सरकार बनाने को ले वह अभी भी आश्वस्त नहीं है,इसलिए उसके नेता अभी जोश में नहीं हैं ,आने वाले दो दिन मप्र का राजनैतिक कुहासा साफ़ होने की उम्मीद है ,वैसे आपको बता दें भाजपा कार्य अवश्य कर रही है लेकिन बेमन से
अनिल कुमार सिंह (धर्मपथ से )