क्या नरेंद्र सिंह तोमर जैसे भाजपा के दिग्गजों को विधानसभा चुनाव मैदान में उतारना भाजपा के केंद्रीय रणनीतिकारों का सही निर्णय है या नहीं यह तो चुनाव परिणामो के बाद ही पता चलेगा लेकिन मैदानी स्थिति और बदलती राजनैतिक परिस्थितियों के चलते नरेंद्र सिंह तोमर की चुनावी साँसें अटकी हुयी हैं ,दिमनी विधानसभा का चुनाव आज राजनैतिक रूप से तोमर को पुनः जमीन पर ले आया है.दिमनी से जो ख़बरें आ रही हैं उस अनुसार तोमर के लिए यह चुनाव कतई आसान नहीं है या कहें वहां की जनता की पसंद नरेंद्र सिंह तोमर नहीं हैं?
मुरैना: एमपी में चुनाव प्रबंधन की पूरी जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पर है। उनके कंधों पर उम्मीदवारों के नाम तय करने का दरोमदार भी था। बीजेपी की दूसरी सूची आई तो उसमें उनका भी नाम था। नरेंद्र सिंह तोमर को भी बीजेपी मुरैना जिले दिमनी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा रही है। दिमनी कांग्रेस का गढ़ है। 2008 में आखिरी बार बीजेपी को यहां से जीत मिली थी। इसके बाद से बीजेपी जीत के लिए यहां तरस रही है। ऐसे में नरेंद्र सिंह तोमर को कांग्रेस के किले में भेजकर बीजेपी ने सभी को चौंका दिया है।
दरअसल, दिमनी विधानसभा सीट 2003 तक एससी के लिए सुरक्षित था। 1998 से लगातार 2003 तीन तक इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है। 2008 में यह सीट सामान्य हो गई थी। इसके बाद भी यहां बीजेपी को जीत मिली थी। 2013 में यह विधानसभा सीट बीजेपी के हाथ से निकल गई। बीएसपी के बलबीर सिंह दंडोतिया ने यहां से जीत हासिल की थी। 2018 में इस सीट पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है। कांग्रेस गिर्राज दंडोतिया ने यहां से जीत हासिल की थी।
गिर्राज दंडोतिया ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी हैं। 2020 में सियासी उथल पुथल के बीच गिर्राज दंडोतिया बीजेपी में आ गए। नवंबर 2020 में जब उपचुनाव हुए तो कांग्रेस के रविंद्र सिंह कुंवर को यहां से जीत मिली। इससे साफ मैसेज था कि दिमनी कांग्रेस का गढ़ बनता जा रहा है।
कांग्रेस के किले को भेदने के लिए बीजेपी ने ग्वालियर चंबल के अपने सबसे बड़े महाराथी को मैदान में उतार दिया है। नरेंद्र सिंह तोमर अभी मुरैना से सांसद हैं। वहीं, मुरैना जिले के छह विधनसभा क्षेत्रों में से चार पर कांग्रेस का कब्जा है। वहीं, दो सीट पर बीजेपी है। बीजेपी दिमनी से नरेंद्र सिंह तोमर को उतारकर मुरैना जिले की दूसरी सीटों को साधने की कोशिश की है।
नरेंद्र सिंह तोमर के वहां से चुनाव लड़ने का असर जिले की दूसरी सीटों पर तो होगा ही। इसके साथ ही दूसरे जिले भी प्रभावित होंगे। 2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल के क्षेत्र में कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की थी। उस जीत के सूत्रधार ज्योतिरादित्य सिंधियाथे.
भाजपा में आने एवं उसकी सरकार बनवाने बाद सिंधिया मंत्री तो बन गए लेकिन उनकी क्षेत्र से सियासी जमीन खिसकती जा रही है,उनकी ही कहें उनके पूरे परिवार का सियासी तारा डूबने को अग्रसर है.सिंधिया भी नहीं चाहेंगे की उनके प्रभाव क्षेत्र में कोई दूसरा कद्दावर उभरे और राजनीति यही कहती भी है वहीँ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी राजनैतिक गोटियां बैठाने में माहिर माने जाते हैं,तोमर को राजनैतिक जमीन दिखाने में ये सब कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
तोमर के पास विधानसभा के वोटों को तोड़ कर कई हिस्सों में विभाजित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है,ठाकुर वोट दिमनी में बँटा हुआ है और तोमर किसी के काम को न करने के लिए वहां विख्यात भी हैं ,वहीँ ब्राह्मण वोट दंडोतिया के साथ रहेगा बचा पिछड़ा वोट बैंक कांग्रेस और बसपा में विभाजित होने की पूरी सम्भावना है,प्रदेश में लहर भी इस समय मोदी या मामा की नहीं है अतः बिना लहार यह चुनाव नरेंद्र सिंह तोमर के लिए गले की हड्डी बन चुका है ,अब देखना है तोमर अपनी कितनी राजनैतिक कार्यकुशलता यहाँ इस्तेमाल कर सकते हैं या किस्मत के भरोसे रह जाते हैं ?
anil singh