नई दिल्ली: आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) के ऑडिट में अनियमितताओं को चिह्नित करते हुए भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा है कि इसके तहत 3,446 मरीजों के इलाज के लिए 6.97 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, जिन्हें डेटाबेस में पहले ही मृत घोषित कर दिया गया था.
परफॉरमेंस ऑडिट में ‘ट्रीटमेंट ऑफ अ बेनेफिशियरी शोन ऐज़ डाइड डूरिंग अर्लीयर क्लेम/ट्रीटमेंट’ शीर्षक के तहत कैग ने कहा है कि ‘जिन मरीजों को पहले टीएमएस (योजना की लेन-देन प्रबंधन प्रणाली) में ‘मृत’ दिखाया गया था, वे योजना के तहत इलाज का लाभ उठाते रहे’.
ऑडिट में पाया गया कि 3,446 मरीजों से संबंधित ऐसे 3,903 दावे थे और देश भर के अस्पतालों को 6.97 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था.
केरल में ऐसे ‘मृत’ रोगियों की संख्या सबसे अधिक 966 थी, जिनके दावों का भुगतान किया गया था. उनके ‘इलाज’ के लिए कुल 2,60,09,723 रुपये का भुगतान किया गया.
मध्य प्रदेश में 403 ऐसे मरीज थे, जिनके लिए 1,12,69,664 रुपये का भुगतान किया गया था. 365 मरीजों के साथ छत्तीसगढ़ तीसरे स्थान पर रहा, जिनके इलाज के लिए 33,70,985 रुपये का भुगतान किया गया.
मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार, अगर किसी मरीज की अस्पताल में भर्ती होने के बाद और छुट्टी से पहले मृत्यु हो जाती है, तो ऑडिट के बाद अस्पताल को भुगतान किया जाता है.
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘(जुलाई 2020 में) डेस्क ऑडिट के दौरान ऑडिट ने पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) को रिपोर्ट किया था कि आईटी सिस्टम (टीएमएस) उसी मरीज के पूर्व-प्राधिकरण अनुरोध (Pre-Authorisation Request) की अनुमति दे रहा था, जिसे पहले योजना के तहत प्राप्त उसके पहले उपचार के दौरान ‘मृत’ के रूप में दिखाया गया था. एनएचए ने ऑडिट टिप्पणी को स्वीकार करते हुए जुलाई 2020 में कहा था कि 22 अप्रैल 2020 को आवश्यक जांच की गई है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी मरीज की पीएमजेएवाई आईडी जिसे टीएमएस में मृत दिखाया गया है, योजना के तहत आगे लाभ प्राप्त करने में अक्षम हो जाए.’
रिपोर्ट के अनुसार, जब कैग ने बताया कि आवश्यक जांच का पालन नहीं किया गया, तब राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण ने अगस्त 2022 में कहा था कि ‘विभिन्न परिचालन कारणों से सिस्टम में प्रवेश की पिछली तारीख की अनुमति है’.
सीएजी ने कहा कि ‘उत्तर तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण द्वारा प्री- ऑथोराइजेशन इनीशिएशन, दावा प्रस्तुतीकरण और अंतिम दावा अनुमोदन’ के लिए ‘लाभार्थियों को पहले ही इलाज के दौरान मृत गया दिखाया गया है, जो एप्लीकेशन में खामियों का संकेत देता है और उपयोगकर्ता स्तर पर दुरुपयोग के लिए इसे अतिसंवेदनशील बनाता है’.
कैग रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण और राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण से ‘अनियमित भुगतान और गड़बड़ी के जोखिम को दूर करने के लिए सभी मामलों की व्यापक जांच सुनिश्चित करने’ के लिए कहा गया है.
यह स्वास्थ्य बीमा योजना भारत में सार्वजनिक और निजी सूचीबद्ध अस्पतालों में माध्यमिक और तृतीयक देखभाल अस्पताल में भर्ती के लिए हर साल प्रति परिवार 5 लाख रुपये का कवर प्रदान करती है.
ऑडिट रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2,231 अस्पतालों में एक ही मरीज को एक साथ कई चिकित्सा संस्थानों में भर्ती किए जाने के मामले सामने आए. ऑडिट में ऐसे कुल 78,396 मामले पाए गए.
गुजरात में सबसे अधिक 21,514 मामले दर्ज किए गए. उसके बाद छत्तीसगढ़ (9,640) और केरल (9,632 मामले) का स्थान है.
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई 2020 में ‘डेस्क ऑडिट से पता चला है कि आईटी सिस्टम (टीएमएस) ने किसी भी मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की एक ही अवधि के दौरान कई अस्पतालों में प्रवेश लेने से नहीं रोका’.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण ने (जुलाई 2020 में) ‘चूक को स्वीकार करते हुए कहा कि मुख्य रूप से ये मामले उन परिदृश्यों में सामने आते हैं, जहां एक बच्चा एक अस्पताल में पैदा होता है और मां की पीएमजेएवाई आईडी का उपयोग करके दूसरे अस्पताल के नवजात देखभाल में स्थानांतरित हो जाता है.’
हालांकि, कैग ने बताया कि प्राधिकरण के दावे के विपरीत अस्पताल में भर्ती होने की समान अवधि के दौरान कुल 23,670 पुरुष रोगियों को कई अस्पतालों में भर्ती कराया गया था.
दिशानिर्देशों के अनुसार, राज्यों में समर्पित एंटी-फ्रॉड सेल औचक निरीक्षण करने, जुर्माना लगाने, पैनल से हटाने, अभियोजन और अन्य निवारक उपायों के लिए जिम्मेदार हैं.
13 राज्यों में धोखाधड़ी करने वाले अस्पतालों से दंड की वसूली के आंकड़ों के अनुसार (राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के पास शेष राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का आंकड़ा नहीं था), छत्तीसगढ़ और मेघालय ने जुर्माने की एक भी वसूली नहीं की, उनकी 100 प्रतिशत वसूली लंबित है. मध्य प्रदेश में 96.08 फीसदी मामलों में कोई जुर्माना वसूली नहीं हुई.
ऑडिट में कहा गया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण में ‘इन 13 राज्यों में 184 डिफॉल्ट अस्पतालों पर लगाए गए 17.28 करोड़ रुपये के जुर्माने में से केवल 4.96 करोड़ रुपये की वसूली हुई थी.’