अनिल कुमार सिंह (धर्मपथ के लिए )
मप्र में भाजपा ने आदिवासियों के वोट बैंक को रिझाने के लिए उनका हमदर्द होने की लोमड़-चालाकी का आगाज किया है,मप्र में कांग्रेस की सत्ता जोड़-तोड़ से गिरा कर कर्जधारी सरकार संचालन से परेशान भाजपा अब अपनी जमीन ठीक करने का प्रयास कर रही है लेकिन वह यह भूल जा रही है की उसके चेहरे पर क्या लिखा है?आदिवासियों का हमदर्द होने का दावा भाजपा नेताओं का एक बड़े झूठ से अधिक साबित होता नजर नहीं आता है.
प्रदेश अध्यक्ष – विष्णुदत्त शर्मा ब्राह्मण हैं
प्रदेश महामंत्री-सुहास भगत ब्राह्मण हैं.
प्रदेश सह संगठन मंत्री-हितानन्द शर्मा ब्राह्मण हैं.
प्रदेश कार्यालय मंत्री-राघवेंद्र शर्मा ब्राह्मण हैं.
प्रदेश मीडिया प्रभारी– लोकेन्द्र पाराशर ब्राह्मण हैं.
प्रदेश कोषाध्यक्ष-अखिलेश जैन
प्रदेश सह कोषाध्यक्ष-अनिल जैन कालूहेड़ा
प्रदेश उपाध्यक्ष-संध्या राय सांसद ,कांत देव सिंह,सुमित्रा बाल्मीकि,सीमा सिंह,गजेंद्र पटेल,चिंतामन मालवीय,मुकेश सिंह चतुर्वेदी,योगेश ताम्रकार,अलोक शर्मा,जीतू जिराती,बहादुर सिंह सोंधिया,पंकज जोशी इनमें एक भी आदिवासी नहीं है.
प्रदेश महा मंत्री-रणवीर सिंह रावत,शरदेन्दु तिवारी,कविता पाटीदार,हरिशंकर खटीक,भगवानदास सबनानी इनमें कोई आदिवासी नहीं।
प्रदेश मंत्री -मदन कुशवाहा,ललिता यादव,रजनीश अग्रवाल,ललिता वानखेड़े,प्रभुदयाल कुशवाहा,राजेश पांडेय,मनीषा सिंह,आशीष दुबे,नंदिनी मरावी ,राहुल कोठरी,संगीता सोनी,जयदीप पटेल इनमें मात्र एक आदिवासी
इनमें मुख्य यह की प्रदेश कार्यालय मंत्री ,मीडिया प्रभारी,प्रदेश प्रवक्ता जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कभी भी आदिवासी सदस्य की नियुक्ति नहीं हुई है.मप्र भाजपा किसी आदिवासी सदस्य को आज तक इतना योग्य नहीं बना पायी या समझ पायी की उसे पार्टी के चेहरे पर स्थान दे सके तब यह दल कैसे आदिवासियों का भला करने का दावा करता है.
खुद को गरीबों का हितैषी बताने वाली शिवराज सरकार को चुनावी समय में ही आदिवासियों की सुध लेना कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है.हमेशा उपेक्षा के शिकार होने वाले इन आदिवासियों को समाज में बराबरी का दर्जा दिलवाने में नाकामयाब सरकार के कार्यकाल में ही आदिवासियों के ऊपर लगातार हमले हो रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से लगातार देखने में आ रहा है कि सरकार आदिवासियों को लेकर काफी सजग हो गई है। हर कार्यक्रमों में प्रमुखता से आदिवासियों की उपस्थिति, उन्हीं के बीच जाकर कार्यक्रमों का आयोजन और आदिवासी जननायकों पर केंद्रित कार्यक्रमों का आयोजन सीधे इस बात की ओर इशारा करते हैं कि सरकार इन आदिवासियों का उपयोग केवल वोटबैंक के लिए करना चाहती है। यह पहला अवसर नहीं है इससे पहले भी कई ऐसे मौके आये हैं जब इसी सरकार ने आदिवासियों का उपयोग केवल वोटबैंक की राजनीति के लिये किया है। पिछले दिनों ही खरगौन जिले में लूट के मामले में गिरफ्तार आदिवासी युवक की मौत हो गई। मृतक के परिजनों ने मौत का कारण पुलिस प्रताड़ना बताया है। लेकिन सरकार ने इसकी जांच करने के बजाय खानापूर्ति के रूप में तीन पुलिसकर्मियों सहित जेल के एक अधिकारी को निलंबित कर दिया।
शिवराज सरकार का आदिवासियों के प्रति बड़ते रूझान के पीछे प्रदेश कांग्रेस और पूर्व सीएम कमलनाथ का बहुत बड़ा योगदान है। कमलनाथ के नेतृत्व में प्रदेश में आदिवासियों को लेकर जो मुद़दे या मसले उठाये जा रहे हैं उससे मध्यप्रदेश सरकार मजबूरन आदिवासियों के हितों के प्रति फिक्रमंद दिख रही है। साथ ही इस समय आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में उपचुनाव भी होने वाले हैं। पिछले लगभग डेढ़ वर्षों से भाजपा सरकार जबसे शासन में आई है उसका ध्यान असल मुद्दों से कहीं पीछे हट गया है।
जबलपुर में जनजातीय समाज के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस में शामिल होने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह पहुंचे। महाकौशल इलाके के आस-पास के लगभग दस जिले आदिवासी बहुल जिले हैं। एमपी में कुल 47 सीटें जनजातियों के आरक्षित हैं जिनमें से पिछले चुनाव में कांग्रेस के पास 32 सीटें गईं थीं। लोकसभा के चुनाव में भले ही भाजपा ने एक तरह से एमपी में क्लीन स्वीप किया लेकिन कई जनजातीय बहुल विधानसभाओं में उसे उम्मीद से कम वोट मिले, जिसने भाजपा की फ़िक्र को और बढ़ाया है। एमपी में 2011 की जनगणना के मुताबिक़ एक करोड़ 53 लाख से अधिक आबादी जनजाति समाज की है। यानी सूबे लगभग हर पांचवा-छठवां व्यक्ति इसी समुदाय से आता है। लगभग 89 विकासखंड जनजाति समुदाय के बाहुल्य वाले हैं। भाजपा के लिए इस जाति को साधना बहुत मुश्किल भरा रहा है। कुल मिलाकर भाजपा का पूरा फोकस इस वर्ग को अगले चुनाव में अपने पक्ष में करने का है।
देश के उन राज्यों में जहां चुनाव हैं, वहां भी इस वर्ग के लोगों के भी साधने का प्रयास है।