फिल्म जॉली एलएलबी आज थियेटरों में रिलीज हो गई। इस फिल्म में देश भर के अदालतों के कामकाज और वकीलों की कार्यशैली को दर्शाया गया है। वैसे भी भारत में अदालतों का काम बेहद सुस्त रफ्तार से चलता है और करोड़ों केस अभी पेंडिंग हैं।
इस फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले में उतनी स्पष्टता नहीं है। मध्यांतर से पहले कई सीन ऐसे आते हैं, जो बोझिल करते हैं। वहीं मध्यांतर के बाद फिल्म में आए रोचक टर्न से उत्सुकता बढ़ जाती है। अदालत के भीतर जो फिल्मांकन किया गया है, वह बेहतरीन बन पड़ा है। खास बात यह है कि न्याय की प्रक्रिया में कॉमेडी का बेहतर तड़का लगाया गया है1
जॉली एलएलबी के जरिये लेखक और निर्देशक सुभाष कपूर ने न्यायप्रणाली और वकालत की दुनिया पर कैमरे को केंद्रित किया है। इस फिल्म में छोटे-छोटे दृश्यों के सहारे यह दिखाने की कोशिश की गई है कि वकालत के पेशे से आम आदमी का वास्ता कैसे पड़ता है और इससे वे कैसे दो चार होते हैं।
दरअसल फिल्म की कहानी एक केस के सहारे आगे बढ़ती है। एक रईसजादा शराब के नशे में फुटपाथ पर सोये मजदूरों को अपनी कार से कुचल डालता है। उसे बचाने के लिए एक स्टार वकील राजपाल (बोमन ईरानी) की सेवाएं ली जाती हैं जो अदालत में जोड़तोड़ के जरिये यह साबित करता है कि वे मजदूर कार से नहीं बल्कि एक ट्रक से कुचले गए हैं। येन केन प्रकारेण वह उस रईसजादे को बचा लेता है।
केस में दलील दी जाती है कि फुटपाथ सोने की जगह नहीं है और उस पर सोने पर तो मरने का जोखिम हमेशा रहेगा। बचाव पक्ष में एक वकील जगदीश त्यागी उर्फ जॉली (अरशद वारसी) तर्क करता है कि फुटपाथ कार चलाने के लिए भी नहीं हैं। इस केस को वह जनहित याचिका के जरिये फिर खुलवाता है क्योंकि उसकी मंशा नामचीन वकील बनने की है। इसके बाद यह मुकदमा पूरी फिल्म में कई लटकों और झटकों के सहारे चलता है।
हालांकि कथानक में कुछ कमियां भी हैं। एक गवाह को पूरी तरह भूला दिया गया है। सुभाष कपूर ने लेखक और निर्देशक की दोहरी जिम्मेदारी ली है। उन्होंने कैरेक्टर लिखने में काफी मेहनत की है और बारिकियों का ध्यान रखा है। जिस आसानी के साथ जॉली सबूत जुटाता है वो कहानी को कमजोर करता है। फिल्म में गाने सिर्फ लंबाई बढ़ाने के काम आए हैं और व्यवधान उत्पन्न करते हैं। हास्य का डोज, कुछ उम्दा दृश्य, संवाद आदि आपको रोचक लगेंगे। निर्देशक के रूप में सुभाष तकनीकी रूप से कोई खास कमाल नहीं दिखाते हैं और कहानी कहने के लिए उन्होंने सपाट तरीका ही चुना है।
फिल्म में बोमन ईरानी ने एक शातिर वकील का किरदार बखूबी निभाया है। अरशद वारसी ने भी बोमन को जबरदस्त टक्कर दी है और ओवर एक्टिंग से अपने आपको बचाए रखा है। सौरभ शुक्ला की भूमिका भी काबीलेतारीफ है। वहीं, अमृता राव भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रहती हैं। जॉली एलएलबी खामियों के बावजूद मनोरंजन करने और अपनी बात कहने में सफल है।
इस फिल्म के निर्देशक हैं सुभाष कपूर। संगीत दिया है कृष्णा ने। फिल्म में मुख्य कलाकार हैं अरशद वारसी, अमृता राव, बोमन ईरानी, सौरभ शुक्ला।