नई दिल्ली। वरिष्ठ नेताओं का मान बना रहे और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर कोई संदेह भी न रहे! भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह लंबी मगजमारी के बाद आखिरकार ऐसा नुस्खा निकालने में कामयाब हो गए।
भाजपा के अंदर चल रहे अंदरूनी घमासान के बीच आखिरकार सभी नेताओं के अहं को साधते हुए नरेंद्र मोदी की चुनावी टीम घोषित हो गई। मोदी की अध्यक्षता वाली चुनाव अभियान समिति में संसदीय बोर्ड के अधिकतर सदस्यों के साथ-साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह और मनोहर पार्रिकर को शामिल कर लिया गया है।
जबकि अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी समेत खुद राजनाथ मार्गदर्शक की भूमिका में रहेंगे।
सत्ता में आने की कवायद के लिए केंद्रीय चुनाव अभियान समिति के नीचे 19 उपसमितियां बनाई गई है। टीम में सबको जोड़ा गया है लेकिन छाप राजनाथ और मोदी की ही है। दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और अरुण जेटली को संयुक्त रूप से सबसे महत्वपूर्ण प्रचार समिति की कमान दी गई है।
साथ में नरेंद्र मोदी और राजनाथ के विश्वस्त अमित शाह और सुधांशु त्रिवेदी को जोड़कर यह सुनिश्चित कर लिया गया कि उनका दबदबा बरकरार रहे। दरअसल कई नेताओं का अहं इस पर भी टिका था कि वह सीधे मोदी को रिपोर्टिग करते न दिखें। लेकिन टीम का गठन इस प्रकार से है कि अंतत: निर्णय मोदी के विचारों के अनुरूप ही हो। एक सवाल के जवाब में पार्टी महासचिव अनंत कुमार ने कहा कि रिपोर्टिग अभियान समिति को होगी लेकिन यह भी सच है कि उसके अध्यक्ष मोदी हैं।
वरिष्ठ नेताओं को साधने की कोशिश हुई। मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में घोषणापत्र समिति काम करेगी तो यह भी ध्यान रखा गया कि पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी और एम वेंकैया नायडू का रुतबा थोड़ा बरकरार रहे। लिहाजा दोनों नेताओं को कुछ उप समितियों के अध्यक्ष के साथ-साथ मार्गदर्शक भी बनाया गया है। गडकरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए प्रभारी की भी जिम्मेदारी दी गई है। उन्हें नवजोत सिंह सिद्धू मदद करेंगे।
उप समितियों का गठन इस प्रकार किया गया है कि हर मतदाता वर्ग पर पूरा ध्यान दिया जा सके। यानी नवयुवकों, संगठित-असंगठित मजदूरों और अलग-अलग पेशों से जुड़े वर्गो तक पहुंचा जा सके। इसके लिए अलग-अलग जिम्मा बांटा गया।
इस टीम के साथ मोदी अगस्त से मिशन-2014 की औपचारिक शुरुआत करेंगे। लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि कुछ नेताओं का अहं अभी भी आड़े आ रहा है। सूत्रों के अनुसार गठबंधन सहयोगियों से बातचीत के लिए बनाई जाने वाली प्रस्तावित उप समिति अटक गई। बताते हैं कि राजग के कार्यवाहक अध्यक्ष आडवाणी इसकी जिम्मेदारी अपने ही पास रखना चाहते हैं। बहरहाल इसकी औपचारिक घोषणा नहीं हुई।