इसे आस्था कहें या अंधविश्वास लेकिन बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र एक अनोखी परंपरा है। यहां मधुश्रावणी पर्व पर नवविवाहता को दीए की लौ से दागा जाता है।
श्रावण शुक्ल पंचमी जिसे यहां नागपंचमी के रूप में मनाया जाता है, उस दिन से श्रावण कृष्ण द्वितीया तक नवविवाहित महिलाएं प्रतिदिन शाम को फूल चुन कर डाली सजाती हैं और अगले दिन उससे देवी पार्वती की पूजा करती हैं।
श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन जिसे मधुश्रावणी त्योहार कहते हैं उस दिन विशेष पूजा अर्चना होती है। यह पर्व इस वर्ष 9 अगस्त को है। इस पर्व पर इस इलाके में एक विचित्र परंपरा चली आ रही है। पति अपनी पत्नी की आंखों पर पान के पत्ते रखकर आंखों को ढंकता है। एक महिला जलते हुए दीए की लौ को नवविवाहिता के घुटने और पैरों पर रखती है।
ऐसी मान्यता कि इससे पैरों और घुटने पर जो फफोले आते वह पति पत्नी के प्रेम को दर्शाते हैं। फफोलों के आकार से अनुमान लगाया जाता है कि पति अपनी पत्नी को कितना प्यार करता है। ये भी माना जाता है कि इससे महिला की सहन शक्ति की भी परीक्षा होती है कि वह परिवार और पति के प्रति कितनी श्रद्घा रखती है।
चन्दधारी मिथिला महाविद्यालय दरभंगा के मैथिली भाषा के विभागाध्यक्ष नारायण झा बताते हैं कि, मध्यकाल में जब मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया तब महिलाओं के सतीत्व की रक्षा के लिए नवविवाहिता महिलाओं को जलते हुए दीए से दागने की परंपरा शुरू हुई।
इसका कारण यह था कि इस्लाम में जली हुई कन्याओं के साथ जोरजबरदस्ती करने की मनाही है। प्रोफेसर झा के मुताबिक अब यह कुप्रथा के रूप में मधुश्रावणी पर्व का हिस्सा बन गया है।