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 भगवान विष्णु पर संपूर्ण जगत के पालन का दायित्व है | dharmpath.com

Sunday , 24 November 2024

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भगवान विष्णु पर संपूर्ण जगत के पालन का दायित्व है

Vishnu-Bhagwnजब कभी पाप और अनाचार बढ़ता है, तब भगवान को अवतार लेकर धरती पर आना पडता है। त्रिदेवों-ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से भगवान विष्णु पर संपूर्ण जगत के पालन का दायित्व है। इसी कारण हर युग में श्रीहरि को अवतार लेना पडा। सतयुग में भगवान विष्णु ने वराहावतार लिया था, जिसकी गणना उनके दस अवतारों में होती है।

एक बार भगवान विष्णु बैकुंठ में लक्ष्मी जी के साथ विश्राम कर रहे थे। उस समय ब्रह्माजी के मानस पुत्र सनकादि भगवान के दर्शन की लालसा से बैकुंठ धाम जा पहुंचे। प्रवेश द्वार पर श्रीहरि के सभासद जय-विजय द्वारपाल के रूप में तैनात थे। उन्होंने सनकादि को आगे बढने से रोक दिया। इससे सनकादि ने क्रुद्ध होकर दोनों द्वारपालों को शाप दे दिया कि तुम दोनों मृत्यु लोक में जाकर असुर बनोगे। सनकादि का शाप सुनते ही जय-विजय भयभीत हो गए। उन्होंने अपने कुकृत्य के लिए सनकादि से क्षमा मांगी। उन्होंने प्रार्थना करते हुए कहा कि असुर योनि में जाने पर भी हमारा उद्धार भगवान विष्णु के हाथों हो और हम मुक्त होकर पुन: बैकुंठ आ जाएं। तभी श्रीहरि अपने द्वारपालों की सहायता के लिए वहां प्रकट हो गए। नारायण के दर्शन से सनकादि अति प्रसन्न हुए और उनका क्त्रोध शांत हो गया। श्रीहरि की इच्छा जानकर सनकादि ने शाप के साथ म क्ति का वरदान भी जोड दिया। कालांतर में जय-विजय हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नामक दैत्य बने। हिरण्याक्ष का संहार- हिरण्याक्ष महाबलशाली था। उसे अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था। एक बार वह समुद्र में घुस गया। वहां उसने वरुण देव को युद्ध के लिए ललक ारा, पर उन्होंने हिरण्याक्ष की ताकत को भांपकर उसे टाल दिया। तब उस महादैत्य ने पृथ्वी को जल में खींच लिया। पृथ्वी के जलमग्न होते ही सर्वत्र हाहाकार मच गया। जल-प्रलय की स्थिति से पृथ्वी के उद्धार हेतु भगवान विष्णु का वराहावतार हुआ। भगवान वराह का शरीर देखते ही देखते पर्वताकार हो गया। उनकी गर्जना से चारों दिशाएं कांपने लगीं। देवता और ऋषि-मुनि वराह रूपधारी श्रीहरि की स्तुति करने लगे। भगवान वराह की चारों भुजाओं में शंख, चक्त्र, गदा और पद्म थे। महावराह ने अपने मुंह से पृथ्वी को उठाकर उसे समुद्र से बाहर खींच लिया। फिर उसे जल से ऊपर लाकर स्थापित कर दिया और हिरण्याक्ष का संहार किया। इससे उसे दैत्य योनि से मुक्ति मिल गई और वह पुन: बैकुंठ लोक वापस चला गया। वराहावतार की महिमा- आज हजारों वर्षो के बाद भी पृथ्वी पर भगवान के वराह रूप का पूजन किया जाता है। भगवान विष्णु के वराहावतार की स्मृति में प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को वैष्णव जन व्रत रखकर बडे धूमधाम से वराहावतार जयंती मनाते हैं। इस वर्ष यह जयंती 18 सितंबर को मनाई जाएगी। भगवान वराह पृथ्वी के अधिपति माने जाते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार जिन्हें भूमि-भवन का अभाव हो या मकान बनाने में रुकावट आ रही हो तो उन्हें वराह जी का विधिवत पूजन करना चाहिए। इसके अलावा तुलसी की माला पर वराह मंत्र ? भूर्वराहाय नम: का जप करने से भूमि और मकान से संबंधित समस्त समस्याओं का समाधान हो जाता है। वराह तीर्थ और मंदिर- नेपाल में कोसी नदी के किनारे धवलगिरि शिखर पर वराह तीर्थ क्षेत्र है। यहां एक मंदिर में वराह भगवान की चतुर्भुजी प्रतिमा है। मंदिर के पास कोबरा (कोका) नदी है, जिसका जल वराह जी की मूर्ति पर चढाया जाता है। भगवान विष्णु ने इसी तीर्थ में महावराह का रूप त्यागकर अपना वास्तविक स्वरूप वापस पाया था। पानीपत से थोडी दूर पर भी वराह तीर्थ है।

ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यहीं वराह के रूप में अवतरित होकर पृथ्वी का उद्धार किया था। राजस्थान के पुष्कर जिले में वहां के राजा अरनोराज ने बारहवीं सदी में वराह मंदिर का निर्माण क रवाया था। यह मंदिर 15 फुट ऊंचा और शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है। विदेशी आक्त्रमणकारियों द्वारा इसे कई बार क्षति पहुंचाई गई। इसके बाद जयपुर के रजा सवाई जयसिंह ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। यहां प्रतिवर्ष भाद्रपद महीने के जल झूलनी एकादशी के अवसर पर वराह जी की मूर्ति को पुष्कर सरोवर में स्नान करवा कर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है।

भगवान विष्णु पर संपूर्ण जगत के पालन का दायित्व है Reviewed by on . जब कभी पाप और अनाचार बढ़ता है, तब भगवान को अवतार लेकर धरती पर आना पडता है। त्रिदेवों-ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से भगवान विष्णु पर संपूर्ण जगत के पालन का दायित जब कभी पाप और अनाचार बढ़ता है, तब भगवान को अवतार लेकर धरती पर आना पडता है। त्रिदेवों-ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से भगवान विष्णु पर संपूर्ण जगत के पालन का दायित Rating:
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